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Saturday, June 6, 2020

पवित्र बनो "जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल चलन में पवित्र बनो"। (1पतरस1:15)

क्योंकि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करता है की - सबसे मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा। (1 पत. 3:11, भज. 34:14)
(इब्रानियों 12:14)

अतिप्रिय बंधुओं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए, उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे क्योंकि वो भला है और उसकी करुणा सदा की है lll

➦ प्रियजनों समस्त प्राणियों का अपने मूल स्वभाव से विपरीत आचरण, परमेश्वर और उसके राज्य और उसकी प्रकृति के विरोध में किया जाने वाला प्रत्येक कार्य चाहे उसे करने वाला मनुष्य हो अथवा कोई भी प्राणी क्यों ना हो पाप में गिना जाता है और हम देख रहे हैं कि ऐसा करना दरअसल उस प्रत्येक प्राणी के स्वभाव में आ गया है, परन्तु जैसा मैंने प्रारम्भ में कहा कि अपने मूल स्वभाव से विपरीत अर्थात इस जगत के प्रत्येक प्राणियों का मानव सहित मूल स्वभाव सृजन के समय कुछ और ही था, वरन यूँ कहें कि अपने सृजनहार के अनुरूप और अनुकूल और पाप रहित एवं उत्तम था, तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी, क्योंकि  यही परमेश्वर कि सृष्टि का अन्तरिम सत्य है अर्थात इस जगत के प्रत्येक प्राणियों के मूल स्वभाव में बदलाव  कालांतर में ही हुआ है और सब के सब बदल गए हैं ll
हम समस्त मानव जो कभी परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर की समानता और स्वरूप में सृजे गए थे आज अंधकार से आच्छादित होकर इस संसार की घोर सांसारिकता की अंधी गलियों में इतनी गहराई से  भटक गए हैं कि हमें आज इतना भी नहीं सूझता है कि इस जगत के सम्पूर्ण मानव जाती एक ही कुल गोत्र और जाति के हैं, हमारी रगों में एक ही व्यक्ति का खून दौड़ रहा है, इस सम्पूर्ण सत्य को पूरी तरह से भुलाकर  एक दूसरे का सर्वनाश करने पर तुले हुए हैं, हत्या करने प्राण लेने के बहाने ढूंढते हैं और तो और इस जगत की एक तुच्छ सी संपत्ति के लिए एक मनुष्य अपनी ही माँ की कोख से उत्पन्न अपने ही खून का बेरहमी से क़त्ल कर देता है और उसका उसे जरा भी पछतावा भी नहीं होता है और समाज एक दूसरे का बुरा करने की इस ओछी मानसिकता को ही  बुद्धिमानी, चतुराई और अधिकार और जीवन शैली मानता  है, आज हम किस तरह के शर्मनाक दौर से गुजर रहे है इसका अंदाजा इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि जिस व्यभिचार को पवित्र शास्त्र बाइबिल में मृत्यु के योग्य महा पाप माना गया है, वही व्यभिचार अनेकों देशों में कानूनन सही और उचित ठहरा दिया गया है ,एक देश के लिया इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है ???
यह जगत इतने अंधकार की दशा से कभी नहीं गुजरा होगा जैसा की हम इस अंतिम युग में देख और सुन रहे हैं, कभी बैठ कर विचार किया आपने कि जो इंसान अपने ही परम पवित्र निर्दोष निष्कलंक सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के स्वरूप और समानता में सृजा गया था वही मानव आज अपने पतन के इतने गर्त मैं कैसे पहुँच गया है??
निःसंदेह विचार नहीं किया होगा क्योंकि जिसने भी विचार करने की कोशिश की, उसे एक अज्ञात शक्ति ने जिसे पवित्र शास्त्र बाइबिल में  इस संसार का ईश्वर कहा गया है उसी धूर्त ने इस जगत में सुखी जीवन जीने का वास्ता देकर सारी काली करतूतों को लीगल अर्थात जायज ठहराकर मनुष्य को इतना मतिभ्रमित कर दिया है कि,मनुष्य नश्वर शरीर के छणिक सुख की प्राप्ति के लिए बिना विचारे कुछ भी करने पर उतारू हो जाता हैll परन्तु आज परमेश्वर का आत्मा अर्थात पवित्रात्मा हमसे चीख चीखकर कह रहा है- मन फिराओ क्योंकि इस भौतिक जगत का अंत और परमेश्वर का राज्य अत्यंत निकट आ गया है lll
प्रियजनों क्या आप जानते हैं आज हम मानव ऐसे क्यों हैं ?? पवित्र शास्त्र बाइबिल में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों की नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है
(रोमियो 6:16)
हाँ प्रियजनों यही तो हुआ है आज सम्पूर्ण मानव जातियों को, कि उसने उस धूर्त अत्याधिक शातिर, सकल धर्म का बैरी, परमेश्वर विरोधी शैतान की आज्ञा मानने के लिए अपने आप को दासों के समान सौंप दिया है, जिसका की अंत मृत्यु है,अनंत मृत्युll अर्थात अनंत काल तक के लिए उसी शैतान के साथ नर्क कि आग में जलते रहना तड़पते और किलपते रहना ll    प्रियजनों भले ही इस जगत में जिसका कि वह शैतान खुद को खुदा घोषित कर चूका है और अपनी अंधकार की सामर्थ से मनुष्यों को क्षण भंगुर सुख सुविधाओं से भर भी दे तो भी ऐसों का अंत बड़ा ही भयानक और दर्दनाक होगा इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकता lll
वैसे भी इस जगत की उत्पत्ति से लेकर अब तक सम्पूर्ण मानव जाति अदन की वाटिका में किये उस महा विद्रोह  महा विश्वासघात का दुष्परिणाम ही भुगत रहे हैं ,जो हमने प्रथम पुरुष आदम में बीज रूप में रहकर अपने ही सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के विरोध में किया था ll भले ही शैतान ने हमें बहकाने में कोई कसर ना छोड़ी थी, फिर भी सम्पूर्ण मानव जाति को परमेश्वर ने ठीक अपनी ही तरह सारे बंधनों से मुक्त और  स्वतन्त्र बनाया था इसीलिए इस महापाप को करने के लिए वो किसी भी तरह से दवाब में नहीं था अर्थात पाप करना उसका अपना निर्णय था अर्थात पाप करना उसकी मज़बूरी कतई नहीं था वह किसी के बन्धन में नहीं था वह शैतान के इस घृणित ऑफर को ठुकराने के लिए भी पूरी तरह से स्वतन्त्र था परन्तु दुर्भाग्य ही कहें या विडंबना कहलो कि प्रथम पुरुष ने यह भी ना सोचा कि उसका यह एक निर्णय उसी एक में बीज रूप में सृजी गयी सम्पूर्ण मानव जाति को प्रभावित करेगा और पतन के गर्त में पहुंचा देगा और वही हुआ भी कि आज कोई भी मनुष्य क्यों ना हो उसने कभी अपने आचरण में कोई पाप ना भी किया हो फिर भी वह पापी ठहरता है, क्योंकि आदम का वह विश्वासघात रूपी महापाप आज उसके डी एन ए के द्वारा सम्पूर्ण मानव जाति में,एक स्वभाव के रूप में ट्रांसमीट अर्थात हस्तांतरित हो गया है, इसीलिए आज कोई भी मनुष्य क्यों ना हो भले ही वह कर्म पापी ना हो, फिर भी वह जन्म पापी अर्थात पाप से उत्पन्न निश्चित तौर पर कहलाता है,और उसे इसी पाप स्वभाव की भारी कीमत आदिकाल से आज तक चुकानी पड़ रही है अर्थात इस जगत की वे तमाम असाध्य अनाम बीमारियां अथवा असाध्य रोग जो कभी गरीब और  अमीर,शुद्ध अशुद्ध, नहीं देखता और किसी पर भी मृत्यु का कहर बनकर टूट पड़ता है ये सब अपने सृजनहार से किया गया विश्वासघात का ही तो दुष्परिणाम हैं lll
और वे तमाम प्राकृतिक विपदाएं एवं आपदाएं जो शहर के शर देशों को तक उजाड़ देती हैं ये सब भी महापाप का ही परिणाम स्वरूप है lll
ये सब कुछ भी नहीं देखती हैं किसी को भी अपनी चपेट में लेकर असहनीय वेदनाओं से भर देती हैं और मृत्यु के भयानक अतिपीड़ादायक बन्धन से बांध देती हैं, किसी भी मनुष्य को अकारण ही तकलीफों में डाल देती हैं ll और फिर पवित्र शास्त्र बाइबिल में भी तो परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन  अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।
(रोमियो 5:12)
और यह भी कि - इसलिए कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं (रोमियों 3:23) प्रियजनों यही सम्पूर्ण सत्य भी है और यही नहीं सम्पूर्ण मानव जातियों में जो तरह तरह के मानसिक शारीरिक और आत्मिक व्याधियां, जिनसे मानव स्वभाव में उत्पन्न एक विषैला परिवर्तन जिसके कारण एक मानव का दूसरे मानव के खून का प्यासा होना मानव का मानव को ही सर्वनाश करने की अथक कोशिशों का ये सिलसिला उफ़! कितना भयानक है जन्म पाप स्वभाव का यह दुष्परिणामll सचमुच हम समस्त मानव जातियों को अथाह सागर से भी गहिरा प्रेम करने वाला हमारा सृजनहार पिता परमेश्वर स्वयं भी मानव की इस दुर्दशा को देखकर अपने ह्रदय से अत्यधिक पीड़ित होकर बिलखकर रोया होगा, क्योंकि यह जन्म स्वभाव रूपी पाप से मुक्ति किसी भी मनुष्य के लिए किसी भी असाध्य से असाध्य रोगों से भी असाध्य होता है जब तक की स्वयं सृजनहार परमात्मा परमेश्वर अपने अनुग्रह से प्रत्यक्ष रीति से इसका उपाय ना करें क्योंकि वचन भी तो यही कहता है कि - परन्तु पवित्र शास्त्र (परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन) ने सब (अर्थात सम्पूर्ण मानव जातियों) को पाप के अधीन कर दिया है ताकि (परमेश्वर की) वह प्रतिज्ञा जिसका आधार येशु मसीह (अर्थात उद्धारकर्ता अभिषिक्त एक अर्थात उद्धार करने के लिए मुक्ति देने के लिए परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का चुना हुआ एक) पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिए पूरी हो जाये (गलातियों 3:22)lll
उपरोक्त वचन यह प्रमाणित कर देता है कि सब के सब पापी हैं और इस महापाप स्वभाव से मुक्ति स्वयं परमेश्वर के उपाय किये बगैर असंभव है अनहोना है ll
फिर भी यदि कोई घमण्ड करे और कहे कि मैं तो जन्म से ही उच्च कुल गोत्र और जाति का ठहरा मुझ में कोई पाप नहीं मुझे किसी मुक्तिदाता की आवश्यकता नहीं तो ऐसों के लिए परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन चेतावनी देकर उद्घोषणा करता है कि - यदि हम कहें  कि हममें कुछ भी पाप नहीं , हम अपने आप को धोखा देते हैं; और हम में सत्य नहीं और यदि हम (मनुष्य ) अपने पापों को मान लें तो वह (अर्थात परमेश्वर ) हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है, यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया है तो उसे (अर्थात परमेश्वर को) झूटा ठहराते हैं और उसका वचन हममें नहीं है (1यूहन्ना 1:8-10)lll
कुलमिलाकर सम्पूर्ण मानव जाति पापी है और उनका उत्तम से उत्तम किया गया कार्य या कर्म परमेश्वर कि दृष्टि में कंटीली झाड़ियों की तरह है अर्थात प्रयोजनहीन है दूसरों की तो छोड़ो स्वयं का उद्धार कराने के लिए भी असक्षम है (पढ़िए मीका 7:4,यशायाह 1:6,अय्यूब 14:4)lll
और ऐसा ही कुछ भाव अपने भारतवर्ष के अन्य ग्रंथों भी हम पाते हैं जो कि, उपरोक्त बातों की पुष्टि करते हुए से  प्रतीत होते हैं जैसे कि उदाहरण के लिए हितोपदेश पर हम ध्यान दें तो मित्र लाभ  17 में हम पाते हैं कि - न धर्मशास्त्रां पठनीति कारणं, न चापि  वेदाध्ययनं दुरात्मनः l स्वभावेवात्र तथाSति रिच्यते, यथा प्रकृत्या मधुरं गवां पयः ll
अर्थात मनुष्य इसलिए भ्रष्ट (पापी) नहीं कहलाता कि उसने धर्मशास्त्र नहीं पड़े अथवा वेदाध्ययन नहीं किया ,वरन अपने स्वाभाविक गुणों के कारण ही वह ऐसा है - जिस प्रकार गाय का दूध स्वभाव से ही मधुर होता है ll अर्थात मनुष्य अपने स्वभाव से ही भ्रष्ट अर्थात पापी है अर्थात यह पैतृक गुण है जैसा कि वचन कहता है
इसीलिए वैष्णव ब्राम्हण अपने गायत्री मंत्रोच्चारण के पश्चात् यह प्रार्थना करते हैं कि - पापोहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः l
त्राहिमाम पुण्डरीकच्छाम सर्व पाप हर हरे ll
अर्थात मैं तो एक पापी ,पाप कर्मी, पापिष्ट तथा पाप से उत्पन्न हूँ l हे कमलनयन परमेश्वर, मुझे बचा लो, और सारे पापों से मुक्त करो ll
सोचिये खुद को उच्च कुल गोत्र और जाति का कहने वाले मनुष्यों का भी ये हाल है, क्योंकि यही मानव जाती का सम्पूर्ण सत्य है और तो और ऋग्वेद 7:89:5 भी पाप के विषय यही उद्घोषणा करता है कि - यह परमेश्वर कि व्यवस्थाओं एवं उसके धर्म (आज्ञाओं अर्थात वचन ) का उल्लंघनकारी स्वभाव है
अर्थात प्रत्येक मनुष्य में पाप एक स्वभाव के रूप में वर्तमान है, इसीलिए तो श्रीमद भगवत गीता भी प्रामाणिक तौर पर कहती है कि -
न तदस्ति पृथिवियां वा दिवि देवेषु वा पुनःl
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ll18:40ll
अर्थात इस पृथ्वी में, आकाशों अथवा उच्चतम लोकों में अर्थात देवताओं में या प्रकृति से उत्पन्न कोई भी ऐसा व्यक्तित्व विद्यमान नहीं जो माया के अर्थात प्रकृति के त्रिगुण बंध से मुक्त हो (स्मरण रहे प्रकृति के अर्थात माया के त्रिगुण बंध सात्विक और रजोगुण के साथ में सबसे निचला गुण तत तामसम या तमस अथवा सुकृत का होता है जो पाप का गुण कहलाता है, कुल मिलाकर सब के सब पाप स्वभाव से ग्रसित अथवा बंधे हुए हैं )
और पवित्र शास्त्र बाइबिल में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन उद्घोषणा करता है कि - पाप की मजदूरी तो मृत्यु है " (रोमियों 6:23)lll और यही बात मुण्डक (मंडल) ब्रम्होपिनिषद 2:4 मैं भी हम पढ़ सकते हैं कि "पाप फल नरकादिमाSस्तु" अर्थात पाप का प्रतिफल नर्क अर्थात अनंत मृत्यु है lll
अर्थात सब के सब अथवा सम्पूर्ण मानव जाति ही अनंत मृत्यु के अधीन हैं और इस पाप स्वभाव से मृत्यु के पाश्विक बंधन से मुक्त होना मनुष्य के अपने वश कि बात तो कतई नहीं है यह प्रमाणित हो चुका है, इसीलिए पवित्र शास्त्र बाइबिल में एक से अधिक स्थानों पर आया है कि, परमेश्वर स्वयं कह रहे हैं कि "मैं  तुम्हारा पवित्र करने वाला परमेश्वर हूँ "
यदि मनुष्यों से यह संभव होता तो परमेश्वर ऐसा नहीं कहते lll
इसीलिए परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन यह भी कहता है कि- चाहे तू अपने को सज्जी से धोये, और बहुत सा साबुन भी प्रयोग करे तौभी तेरे अधर्म का धब्बा मेरे साम्हने बना रहेगा (यिर्मयाह 2:22)
वहीँ मुंडकोपनिषद 3:1:8 भी स्पष्ट रीति से कहता है कि -
न चछुवा गृह्यते नापी वाचा l
नान्यैः देवैः तपसा कर्मण वा ll
अर्थात ना नेत्र, ना वचन ना तपस्या ना कर्म और ना किसी अन्य युक्ति से वह प्राप्त होता है lll
और ठीक ऐसा ही हम आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थ  विवेक चूड़ामणि
में पाते हैं लिखा है कि -
न योगेन न सांख्येन ,कर्मणा नो  न विद्यया l ब्रम्हात्मैकत्व बोधेन मोछः सिध्यते नान्यथा ll
अर्थात मोक्ष अथवा मुक्ति ना तो योगा करने से या साँख्य अर्थात ब्रम्ह के तत्व चिंतन से, और ना ही कर्म तथा विद्या लाभ से, परन्तु परमात्मा और जीवात्मा के एकत्वबोध से सिद्ध होता है lll
और यह एकत्व बोध केवल परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के अनुग्रह से ही संभव है अन्य कोई दूसरा उपाय है ही नहीं इसीलिए तो परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - क्योंकि हम (अर्थात सम्पूर्ण मानव जाति)भी पहिले, निर्बुद्धि, और आज्ञा न मानने वाले, और भ्रम में पड़े हुए, और रंग रंग के अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्व में थे, और बैरभाव, और डाह करने में जीवन निर्वाह करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे। पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की कृपा, और मनुष्यों पर उसकी प्रीति प्रगट हुई।     तो उस ने हमारा उद्धार किया: और यह धर्म के कामों के कारण नहीं,जो हम ने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नए जन्म के स्नान,और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ। जिसे उस ने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उंडेला। जिस से हम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस बनें।
(तीतुस 3:3-7)
सो उसके अनुग्रह से ही मनुष्य प्रभु येशु मसीह के द्वारा उद्धार अर्थात पाप स्वभाव से पूर्ण मुक्ति पा सकता है इस जगत मैं मुक्ति का अन्य कोई उपाय है ही नहीं lll
प्रिय जनों यही तो परमेश्वर का सम्पूर्ण मानव जातियों के प्रति सच्चे प्रेम का वास्तविक प्रगटीकरण है क्योंकि वचन ही फिर से यह कहता है कि -
क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया। और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।परन्तु जो सच्चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।
(यूहन्ना 3:16-21)
अब हमें एक पल भी गंवाए बिना अपने मसीह यीशु के पास लौटना है हम कहीं भी क्यों ना हों कैसे भी क्यों ना हो बस लौटना है, मन फिराना है, अपने अपने वस्त्रों को धो लेना है,क्योंकि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जिवंत वचन प्रभु येशु मसीह कहता है कि-
मैं अलफा और ओमेगा, पहिला और पिछला, आदि और अन्त हूं।  धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से हो कर नगर में प्रवेश करेंगे। पर कुत्ते, और टोन्हें,और व्यभिचारी,और हत्यारे और मूर्तिपूजक,और हर एक झूठ का चाहने वाला, और गढ़ने वाला बाहर रहेगा॥ मुझ यीशु ने अपने स्वर्गदूत को इसलिये भेजा, कि तुम्हारे आगे कलीसियाओं के विषय में इन बातों की गवाही दे: मैं दाऊद का मूल, और वंश,और भोर का चमकता हुआ तारा हूं॥और आत्मा,और दुल्हिन दोनों कहती हैं,आ; और सुनने वाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले॥
(प्रकाशित वाक्य 22:13-17)
प्रियजनों इस संसार का अंत निकट है, मनुष्य पाप करने के चलते नहीं वरन अपने जन्म स्वभाव से ही अपवित्र है, इसीलिए मनुष्य अनंत मृत्यु का पात्र है,और उसको अपने पापो से बुराईयो से मन फिराने की आवश्यकता है,और जीवित परमेश्वर ने हमें अपनी संगति में पवित्र होने के लिये बुलाया है, इसलिये प्रेरित पतरस कहते है, जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल चलन में पवित्र बनोlll
➦ प्रेरितो की कलीसिया एक सामर्थी कलीसिया थी क्योकि वो परमेश्वर की आज्ञाओ के प्रति आज्ञाकारी थे, जैसा प्रभु यीशु ने उन्हे करने को कहा वैसा ही उन्होने किया, पवित्र शास्त्र कलिसिया को मसीह की दुल्हन कहता है, यदि दुल्हन उसी की तरह पवित्र न हो तो दुल्हा निःसंदेह उनको स्वीकार नही करेगा, ठीक वैसे ही यदी हम अपने सारे चाल चलन में पवित्र न बने तो प्रभु यीशु हमें स्वर्गीय राज्य के लिये स्वीकार नही करेगे, इसीलिये यह आवश्यक है कि हम अपने पापो से अभी समय रहते मन फिरा कर परमेश्वर के भय में अपना जीवन जियें, क्योकि प्रभु यीशु ने साफ कहा है, स्वर्ग के राज्य में केवल वही प्रवेश करेगा, जो स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलेगा, इसलिये वचन को केवल सुनने वाले ही नही, परन्तु वचन पर चलने वाले बनें lll परमेश्वर के आज के इस अद्भुद सन्देश के माध्यम से स्वयं परमेश्वर आपको बहुतायक की आशीषों से भर देlll आमीन फिर आमीनlll

अतिप्रिय बंधुओं यह सर्वनाश के पहिले की अंतिम चेतावनी है अर्थात जगत ने मन ना फिराया तो सर्वनाश निश्चित है ???



क्योंकि परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - जो कुछ गाजाम नाम टिड्डी से बचा; उसे अर्बे नाम टिड्डी ने खा लिया। और जो कुछ अर्बे नाम टिड्डी से बचा, उसे येलेक नाम टिड्डी ने खा लिया, और जो कुछ येलेक नाम टिड्डी से बचा, उसे हासील नाम टिड्डी ने खा लिया है। हे मतवालो, जाग उठो, और रोओ; और हे सब दाखमधु पीने वालो, नये दाखमधु के कारण हाय, हाय, करो; क्योंकि वह तुम को अब न मिलेगा॥ देखो, मेरे देश पर एक जाति ने चढ़ाई की है, वह सामर्थी है, और उसके लोग अनगिनित हैं; उसके दांत सिंह के से, और डाढ़ें सिहनी की सी हैं। उसने मेरी दाखलता को उजाड़ दिया, और मेरे अंजीर के वृक्ष को तोड़ डाला है; उसने उसकी सब छाल छील कर उसे गिरा दिया है, और उसकी डालियां छिलने से सफेद हो गई हैं॥जैसे युवती अपने पति के लिये कटि में टाट बान्धे हुए विलाप करती है, वैसे ही तुम भी विलाप करो। यहोवा के भवन में न तो अन्नबलि और न अर्घ आता है। उसके टहलुए जो याजक हैं, वे विलाप कर रहे हैं। खेती मारी गई, भूमि विलाप करती है; क्योंकि अन्न नाश हो गया, नया दाखमधु सूख गया, तेल भी सूख गया है॥ हे किसानो, लज्जित हो, हे दाख की बारी के मालियों, गेहूं और जव के लिये हाय, हाय करो; क्योंकि खेती मारी गई है। दाखलता सूख गई, और अंजीर का वृक्ष कुम्हला गया है। अनार, ताड़, सेव, वरन मैदान के सब वृक्ष सूख गए हैं; और मनुष्यों का हर्ष जाता रहा है॥ हे याजको, कटि में टाट बान्ध कर छाती पीट-पीट के रोओ! हे वेदी के टहलुओ, हाय, हाय, करो। हे मेरे परमेश्वर के टहलुओ, आओ, टाट ओढ़े हुए रात बिताओ! क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर के भवन में अन्नबलि और अर्घ अब नहीं आते॥उपवास का दिन ठहराओ, महासभा का प्रचार करो। पुरनियों को, वरन देश के सब रहने वालों को भी अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में इकट्ठे कर के उसकी दोहाई दो॥ उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन हो कर आएगा।
(योएल 1:4-15)

अतिप्रिय बंधुओं परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा एलोहीम का करोड़ों करोड़ों धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए, उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे, क्योंकि वह भला है उसकी करुणा सदा की हैlll

प्रियजनों जैसा कि मैं बार बार कह रहा था कि हम इस अंतिम युग के अंतिम पड़ाव में रह रहे हैं, जिस किसी मनुष्य ने अब भी अपना मन ना फिराया और खुद को सम्पूर्ण आत्मा से प्रभु परमेश्वर येशुआ मेसियाख के पवित्र चरणों में पूरी ईमानदारी से अर्पित ना किया तो सर्वनाश निश्चित है, क्योंकि यह घुटने टेककर अपने किये पर पछताने और पश्चाताप करने का, अर्थात समस्त पाप स्वभाव से मन फिराने का समय है,
लोगों ने कोरोना महामारी को बहुत ही हल्के में लिया था, उसके दुष्परिणाम हम अपनी आँखों से देख ही रहे हैं और तभी अचानक से एक दूसरी आपदा ने हमारी इस भूमि पर हमला कर दिया है, इसे भी हल्के में ना लें क्योंकि जिन्होंने पवित्रशास्त्र बाइबिल का भलीभांति अध्ययन किया है वे जानते हैं की हम सभी अर्थात इस जगत के सम्पूर्ण मानव जाति सर्वनाश के कगार पर खड़े हुए हैं, प्रभु येशुआ के द्वितीय आगमन के पूर्व पश्चाताप और विलाप के साथ मन फिराने का एक अंतिम अवसर अनुग्रह से हमें प्रदान किया गया है और परम प्रधान परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए कह रहा है कि-
और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना॥
(लूका 19:44)
प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।
(2 पतरस 3:9)
मैं ने उस को मन फिराने के लिये अवसर दिया, पर वह अपने व्यभिचार से मन फिराना नहीं चाहती।
(प्रकाशित वाक्य 2:21)
हाँ प्रियजनों यही सम्पूर्ण सत्य है सम्पूर्ण जगत के मानव मात्र का कि वह अपने ही बकवास दम्भ में ज़ी रहा है अथवा जीने कि कोशिश कर रहा है वहीं सकल धर्म का बैरी, परमेश्वर का परम विरोधी दुष्ट अति धूर्त शैतान सम्पूर्ण मानव जाति को सर्वनाश के कगार पर लाकर हमें जीने ना देने की अपनी ही कल्पना को साकार करने की धुन में है और परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर ने सिर्फ अनुमति दी है ताकि मनुष्य मात्र को अपनी वास्तविकता से रूबरू करा सके उर्दू में कहा जाये तो वह इंसान को उसकी ओकात याद दिलाना चाहता है फिर भी वह हमारा सृजनहार है इसीलिए अब भी वह हमसे अथाह सागर से भी गहिरा प्रेम करता है क्योंकि वह हमारा बचाने वाला भी है, हमें इस आपदा से बचाना भी चाहता है, परन्तु विडंबना ही कहलें कि मनुष्य उसकी चेतावनियों को तुच्छ  जानकर प्राप्त अवसरों को खोता चला जा रहा है, और कुछ लोग तो इसी दम्भ में ज़ी रहे हैं कि मैं तो प्रभु का हूँ भाई, मुझे क्या जरूरत है मन फिराने की क्योंकि मैं तो बचपन से मसीही कहलाता हूँ क्योंकि बचपन से मेरा नाम पॉल है, जॉन है, पीटर है, जोसेफ है हम तो अपने नाम से ही बच जायेंगे अर्थात प्रभु हमारे नामों के अनुसार ही हमें बचा लेंगे परन्त्तु जिसके कान हों वे सुन लें की यह शताब्दी का सबसे बड़ा जोक अर्थात मजाक ठहरेगा, सचमुच यह अत्याधिक हास्यास्पद बात है और मूर्खतापूर्ण भी क्योंकि ऐसा कहकर लोग बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में ज़ी रहे हैं, क्योंकि नामधारी मसीहियों का भी वही हाल होना है जो शेष जगत का और बचेंगे केवल वही जिन्होंने जल और आत्मा से नए जन्म की  पारलौकिक, परम अनुभूति को पा लिया है और जिन्होंने परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर प्रभु येशुआ मेसियाख से पवित्रात्मा के द्वारा एकाकार कर लिया हैlll कुल मिलाकर जिन्होंने प्राप्त अवसर को बहुमूल्य समझकर अपने पाप स्वभाव से मन फिरा लिया हो (यूहन्ना 3:1-10, तीतुस 3:3-10,)
अर्थात रोमियों कि पत्री अध्याय 8 के 1 से 14 तक उद्घोषित परम  प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन के अनुसार चलता हो (उपरोक्त वचनों को अत्याधिक ध्यान पूर्वक पढें)
क्योंकि अब देर ना होगी हमें अपने आपको रोमियों की  पत्री 12:1-7 में  लिखे हुए वचनों के आधार पर खुद को पूरी रीति से प्रभु के चारणों में अर्पित करने का अवसर है ये, और प्रभु परमेश्वर स्वयं कहते हैं कि-
और अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। (आमो. 5:13, कुलु. 4:5)
(इफिसियों 5:16)
अर्थात यही है वो अंतिम अवसर जो इस जगत के लोगों को अपने अनुग्रह से प्रदान किया गया है, अगर अब भी इस अवसर को तुच्छ सा जानकर अपना मन ना फिराएं तो सर्वनाश निश्चित है, ऐसा मैं नहीं वरन परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन कहता है lll
प्रियजनों योएल भविष्यद्वक्ता ने हजारों साल पूर्व इन्हीं दिनों को सर्वशक्तिमान कीओर से सर्वनाश का दिन कहा है जैसा कि इसी सन्देश के प्रारम्भ में अति स्पष्ट रीति से  उल्लेखित है, और  इन्हीं बातों की पुष्टि पवित्र शास्त्र बाइबिल के ही अंतिम पुस्तक प्रकाशित वाक्य में भी अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए की गयी है जो कि  आज से तक़रीबन  2000 साल पाहिले, प्रभु येशु मसीह के स्वर्गारोहण के पश्चात्, पहली ही शताब्दी में पवित्रात्मा के द्वारा यूहन्ना प्रेरित ने लिखीं लिखी थीं, और वे सारी बातें ही आज अक्षरशः पूरी होती दिखाई दे रहीं हैं, इसीलिए आज का हर एक सच्चा मसीही, (अर्थात मसीही धर्म का अनुयायी नहीं वरन) मसीह का सच्चा अनुयायी, अत्याधिक व्याकुल है, वह भी खुद अपने लिए नहीं वरन इस जगत के लिए, जो अनजाने ही विनाश की  ओर अति वेग से जा रहा है lll
प्रिय जनों बहुतों ने अभी भी नम्र और दीन होकर मन फिराने अपने किये पर सच्चे मन से पश्चाताप करने के बजाय, अपने अपने हृदयों को अब भी उद्धारकर्ता प्रभु येशु मसीह के प्रति अत्यधिक कठोर कर रखा है क्योंकि मसीह यीशु चंद मुट्ठी भर लोगों या किसी एक कुल या जाति की बपौती नहीं है वरन वह तो सम्पूर्ण मानव जाति का उद्धारकर्ता है इसीलिए किसी मसीहियों की प्रार्थना पर निर्भर ना रहकर प्रत्येक मानव जाति का प्रथम कर्तव्य है, कि मन फिराकर खुद को उसके पवित्र चरणों में अर्पित कर दें परन्तु मनुष्य है कि अपने अपने किये पर शर्मसार होने की बात तो दूर वरन उन्हें रत्ती भर भी रंज नहीं, वरन अपने सृजनहार पर ही सवाल खड़े कर देने पर उतारू हैं, और अभी भी सृजनहार प्रभु परमेश्वर यीशु मसीह को सिर्फ तथाकथित ईसाईयों का कुल देवता समझकर, किसी और परमात्मा से पूछ रहे हैं कि वह इस सर्वनाश की अनुमति क्यों दे रहा है ???
प्रियजनों याद रखें इंसानों के बर्दाश्त की एक हद होती है, तो निश्चित ही मनुष्यों को सृजने वाला परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की भी सहने की एक हद है, परन्तु उसकी दया का जो असीमित है जिसका कोई अंत नहीं हद नहीं क्योंकि वह तो प्रेम है, इसीलिए तो हम अब तक बचे हुए हैं, और निर्मूल नहीं हुए हैं, स्मरण रहे यह तो प्रारम्भ है अंत का, यही समझो कि यही अंतिम चेतावनी है, हमारे मन फिराने के लिए क्योंकि अभी तो आने वाली हैं वे बातें जिन्हें देखकर मनुष्य पहाड़ों से कहेगा कि मेरे ऊपर गिर जाओ ताकि मैं मर जाऊँ, और  इस अति दर्दनाक मंजर से होकर गुजरने से मौत ही भली है, परन्तु लिखा है उस दिन तुमको मौत भी ना मिलेगी, क्योकि जिंदगी और मौत तो उसी परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के हाथ में निहित है, वही तुम्हारे ह्रदय कि कठोरता के अनुसार उस आने वाले अति भयानक दर्द से होकर गुजरने देगा वह भी मौत  दिये बगैर, क्योंकि मौत तो आसान सा रास्ता होता है दर्द से मुक्ति का, परन्तु उन दिनों में मनुष्य मरने में भी नाकाम होगा, ऐसे दिन निःसंदेह आने वाले हैं क्योंकि ऐसा मैं नहीं, वरन पवित्र शास्त्र बाइबिल में, परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन हमारे उद्धारकर्ता और प्रभु, यीशु मसीह ने अति स्पष्ट रीति से उद्घोषणा कर दी है, अब किसी भी झूठे भविष्यद्वक्ताओं के लिए अपने नाम और शोहरत के लिए फ़ालतू में चोंच चलाने का कोई मतलब नहीं निकलता वरन ऐसे झूठे लोगों को भी खुद को पवित्रात्मा को पूरी ईमानदारी से सौंप दो और परमेश्वर के मर्म को अनुभव से जानलो, फिर से कहता हूँ अवसर को बहुमूल्य समझो दीन बहुत ही बुरे हैं।
(रोमियों 12:1-7,एवं इफिसियों 5:16)

परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर अपने इस अद्भुद सन्देश के द्वारा आपके ज्ञान चक्षुओं को खोल दे और परम सत्य का ज्ञान दे lll आमीन फिर आमीन lll

Sunday, May 17, 2020

Sermon with Evening Prayer, "UNDER CONSTRUCTION!" II "निर्माणधीन !"II 17...

जीवन की रोटी




परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर कहते हैं कि जीवन और मृत्यु को मैने तुम्हारे साम्हने रखा है तुम जिसे चुनना चाहो चुनलो फैसला तुम्हारा, हमारे इस अविनाशी जीवन का मूल स्रोत, सृजनहार, परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर और उसकी जीवदायी आज्ञाएँ अथवा परमेश्वर की श्रिष्टी, अर्थात नाशवान, निरे भौतिक मनुष्य और उनकी अपनी  सांसारिक परम्पराएं, किसे मानना है किसका भय खाना है, चुनाव आपका।।

क्योंकि पवित्र शास्त्र बाइबिल तो हमें स्पष्ट रीति से चेतावनी देकर कहता है कि-
जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है। मत्ती 10:28*
क्योंकि जीविते परमेश्वर के हाथ में पड़ना अति भयानक होता है
इब्रानियों 10:31

अतिप्रिय बन्धुओं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस उत्तम वचन के लिए और उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे क्योंकि वो भला है और करुणा सदा की है।।।

प्रियजनों अधिकांशतः हमारे जीवन मे अचानक से कुछ ऐसे मोड़ आ जाते हैं जहां हमें तुरंत ही ये निर्णय लेना होता है कि, परमेश्वर या मनुष्य और उसकी परम्पराएं एवं रीति रिवाज
और ऐसे मोड़ प्रत्येक मनुष्यों के जीवन में कई कई बार आते है, मुझे तो कई बार ऐसा लगता है कि मन को जांचने और ह्रदय को परखने वाला परमेश्वर जानबूझ कर इन परिस्थितियों को हमारे जीवनों में आने देता है ताकि हम खरे उतरें ।।
परंतु वहीं दूसरी ओर अधिकांशतः मनुष्य यहीं पर चूक कर जाता है, क्योंकि उसकी अपनी सोच के मुताबिक, जो कि उसकी अपनी भावनाओं पर केंद्रित विचारधाराओं से ओतप्रोत होती हैं, (क्योंकि मनुष्य एक भावनात्मक प्राणी होता है) सो अपनी इन्हीं भावनाओं से भरी सोच और मानसिकता और मान्यताओं के मुताबिक मनुष्य यह  मान लेता है कि हमारा परिवार, खानदान, समाज जो 24 घंटे हमारे साथ रहता है जिनके लिए हम जी रहे हैं उनकी पहिले सुनना जरूरी है, सुख चैन से जीने के लिए (जबकि सच्चा सुख और चैन तो केवल परमेश्वर की ओर से मिलता है और वो ही उसमें चिर स्थिरता प्रदान करता है)।।। विडंबना है ये या कुछ और कि मनुष्य अपने वास्तविक सुखों के मूल श्रोत को ही नहीं जानता और पहिचानता हैं अर्थात उसका ज्ञान ही नहीं रखता कहूँ तो अतिशयोक्ति ना होगी, क्योंकि वो इनकी भौतिक आँखों से नजर नहीं आता इसीलिए तो परमेश्वर स्वयं कहते हैं कि -                 
मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नाश हो गई; तू ने मेरे ज्ञान को तुच्छ जाना है, इसलिये मैं तुझे अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराऊंगा। और इसलिये कि तू ने अपने परमेश्वर की व्यवस्था को तज दिया है, मैं भी तेरे लड़के-बालों को छोड़ दूंगा।
(होशे 4:6)

अति स्पष्ट है कि जो परमेश्वर का ज्ञान रखता है वो मनुष्यों कि परम्पराओं, तीज त्योहारों और तत्व ज्ञान से परे परमेश्वर कि व्यवस्था उसके नियम कानूनों से प्रेम करेगा lll
परन्तु यहाँ तो मनुष्यों की सोच बिलकुल उल्टी दिखती है वे सोचते हैं क्योंकि परमेश्वर तो बहुत दूर स्वर्ग में रहते हैं उन्हें तो हम कभी भी मना लेंगे जिनके बीच में हमें रहना है उन्हें खुश रखना जरूरी है, परन्तु स्मरण रखें कि वो तो सर्वव्याप्त है, हर पल, हर समय हर कहीं अर्थात तुम्हारे सबसे करीब, वरन जिसने उसे सम्पूर्ण आत्मा से आत्मसात किया है उनके तो अंदर भी बसता है, बस जरूरत है तो एक निश्छल, निष्कपट ,सीधे ,सच्चे और सरल, ह्रदय की, जो उसे हर एक पल अपने भीत में  अनुभूति अर्थात महसूसने पाए, क्योंकि वो तो परम पवित्र परम आत्मा है वो पाप के साथ वास नहीं करता क्योंकि पाप से तो उसे घ्रणा है, परंतु हम पापियों से अथाह सागर से भी गहरा प्रेम है उसे और जहां सिर्फ प्रेम ही प्रेम है वहां वो रहता है, निःसंदेह उसकी पवित्र उपस्थिति वहीं होती है क्योंकि वह स्वयं सर्व सिद्ध अनंत कलिक प्रेम है।।।
अतिप्रिय बन्धुओं क्योंकि हम उसे जानते नहीं इसलिए उसे मानते नहीं, मानते भी हैं तो अज्ञानतावश, भावनात्मक तौर से कि वो तो कण कण में है इसलिए सबमें वो व्याप्त है कहीं भी किसी को भी पूज लो वो ही मिलेगा, यह बात तो उनके लिए जिन्होंने उसे पा लिया है अति मूर्खतापूर्ण एवं हास्यापद है, क्योंकि
 उसकी अपनी श्रष्टी में हम उसकी कलाकृति और अद्भुद ज्ञान का समावेश तो देख सकते हैं परन्तु उसके स्वरूप को नहीं क्योंकि वो अपनी ही सृष्टि से सर्वथा भिन्न है और उसका अस्तित्व भी हम सबसे भिन्न है वो सर्व व्यापी तो है परंतु अशुद्ध अर्थात पाप अर्थात किसी भी प्रकार के बंधनों से मुक्त है इसीलिए वो सबमें नही है परन्तु सब जगह वो मौजूद है अर्थात सर्वव्याप्त है, क्योंकि वो तो अद्भुद है अनोखा और सर्वश्रेष्ठ है सर्वसिद्ध, निष्पाप निष्कलंक और निर्दोष है वो, उसके लिए सब कुछ संभव है खुद की बनाई हुई समय सीमाओं से परे उन्मुक्त सारे समयों का वो सबका स्वामी है, वो तो अपनी ही मन मर्जी का मालिक हम सब उसकी श्रिष्टि मात्र हैं, सचमुच हम तो निमित्त मात्र हैं ।।
हमें उसे समझने के लिए अनुग्रह और समझ भी वो ही देता है वह भी पवित्रात्मा के दान स्वरूप, इसीलिए तो इस आत्मा के बारे में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अति स्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए कहता है कि -
यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी।
(यशायाह 11:2)
 अर्थात जिस किसी पर यह आत्मा ठहरेगी सो ही उसे अनुभूति करने पाता है जान पाता है, अर्थात उस परम धन्य परमेश्वर को महसूसने के लिए उसका आत्मा (पवित्रात्मा)
जो हममें तभी वास करते हैं जब हम उसी एक के अनुग्रह से अपने पाप स्वभाव से मन फिराकर प्रभु येशुआ जो मसीह कहलाया के सनातन सत्य और सिद्ध नाम से जल और आत्मा से नये जन्म की परालौकिक परम अनुभूति को प्राप्त कर लें।।।।
अफसोस होता है कि, अज्ञानता वश मनुष्य अपनी निराधार सांसारिक शारीरिक भावनाओं के चलते भारी भूल में पड़ जाता है, कई बार और मनुष्यों को खुश करने के चक्कर में परमेश्वर के अतिभयंकर कोप का भागी हो जाता है।।
देखिए हमें सबसे पहिले तो ये जानना होगा कि ये मानव समाज और उसकी परम्पराएं यम नियम, कर्म काण्ड, विधिविधान, साँख्य सब कुछ मनुष्यों के सीमित मष्तिष्क और उनकी अपनी सीमित बुद्धि और ज्ञान की वे उपज मात्र होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य स्वर्ग के दरवाजों को खोलने की बात तो बहुत दूर उन्हें खटखटा भी नही सकता है, वरन इन परम्पराओं के द्वारा स्वर्ग के दरवाजों को तो वो छू भी नही सकता है,
तो इन परम्पराओं मान्यताओं भावनाओं से वो परमेश्वर, जो सबमें सब कुछ कर सकते है, उन्हें कैसे प्रसन्न कर सकता है???
क्योंकि मनुष्यों की बुद्धिमानी भी परमेश्वर के सम्मुख मूर्खता ठहरती है ।।
ऐसे में भलाई तो सिर्फ इसी में है कि निरंतर प्रयास करें कि किसी भी तरह से हम केवल अपने सृजनहार परमेश्वर को खुश कर सकें, चाहे इसके लिए हमें असंख्यों समाज और उसकी इन बेतुकी, रीति रिवाजों और  परम्पराओं का त्याग ही क्यों न करना पड़े।।।
परंतु विडंबना ही कहलो या कुछ औऱ कि प्रत्येक मनुष्यों की उनकी अपनी उल्टी खोपड़ी में ठीक उल्टी ही सोच उत्पन्न होती है, इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि उदाहरण के लिए,
उस परम पवित्र परमात्मा परमेश्वर से अपने निज संबंधों को सही तरीके से और विधिवत रूप से स्थापित नही कर पाना, वह भी अपने जन्म स्वभाव रूपी पाप के चलते,
और इसीलिए छटपटाहट में वे खुद अपनी ही बुद्धि से पाप स्वभाव से मुक्ति का साधन या विधि ढूंढ लेते हैं, और असफल होने पर इसके प्रति उदासीन होकर, परमेश्वर से दूरी बना लेते हैं, और फिर मानव मात्र से अथवा अपने समाज जैसे मनुष्यकृत व्यवस्था से चिपक जाते हैं एक गोंच कि तरह क्योंकि उसी से उनका भरण पोषण होता है सो अपने समाज पर परमेश्वर से भी ज्यादा निर्भर हो जाते हैं।।
क्योंकि मनुष्य तो एक सामाजिक प्राणी होता है जो सिर्फ अपने स्वार्थ और अपनी निजी भावनाओं की संतुष्टि के लिए ही तो जीता है सो ही वो ऐसा करता है ऐसा कहना अतिश्योक्ति ना होगी।।
अगर उसे किसी वस्तु की आवश्यकता ही नहीं होती तो अपने में ही मस्त रह लेता है मनुष्य।।
 अधिकांशतः मनुष्य स्वभाववश परमेश्वर से भी अपने इसी स्वार्थ के लिए अर्थात आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जुड़ता है, क्योंकि वो  इतना तो जानता है कि ,,
जो मनुष्यों से भी नहीं हो सकता वो परमेश्वर से हो सकता है
तो कुल मिलाकर छोटी मोटी आवश्यकताओं के लिए समाज चाहिए बड़ी बड़ी आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर, कुल मिलाकर स्वार्थ स्वार्थ और स्वार्थ, स्वार्थ के बिना सब कुछ अधूरा है, क्योंकि स्वार्थ से ही उसका जीवन चलता है इनके लिए परोपकार तो फालतू के लोगों का काम है अर्थात बुद्धिहीन मुट्ठी भर साधू संतों का जिन्हें जीना नहीं आता क्योंकि मनुष्य और उसके जीवन के लिए स्वार्थ ही इनका कुल देवता है जो इनके ऊपर चढ़ने की सीढ़ी होती है, इन स्वार्थियों के लिए उदारता तो हर दूसरे इंसान में होना ही चाहिए ताकि इन्हे सब कुछ मिलता रहे परन्तु खुद इनमें तो केवल स्वार्थ ही जिसके चलते वो सब कुछ पा सकें।।।
प्रिय जनों यही हर उस मनुष्य की सोच होती है जो अपने सृजनहार को नहीं जानता lll
परंतु स्मरण रहे परमेश्वर ने मनुष्य को सृजते वक्त ऐसा सृजा नहीं था परन्तु कालांतर में पाप स्वभाव में फंसकर ही मनुष्य ऐसा हो गया है क्योंकि पवित्र शास्त्र बाइबल भी हमें यही सिखाता है।।।
मनुष्य अपने इन निजी स्वार्थों के चक्कर में ये भूल जाता है कि, उसका इस जगत में आने का मकसद, इस बहुमूल्य जीवन को पाने का मूल उद्देश्य, सिर्फ और सिर्फ अपने इस पाप स्वभाव से मुक्ति पाना, उद्धार पाना है।।।
 अर्थात वो ये भूल जाता है कि, हमने जो ये जीवन पाया है, वो किसी और की अमानत है, इसे उसी एक की सिद्ध इच्छा के अनुरूप जीकर उसे सौंप देना ही हमारा परम कर्तव्य और एक मात्र उद्देश्य होना चाहिए ।।।
इस एक मात्र परम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ही, हम इस जगत में भेजे गए हैं ऐसा कहना अतिश्योक्ति ना होगी।।
जैसा कि भगवत गीता में लिखा है कि,
ईह लोकं मुक्ति द्वारं
अर्थात यही लोक मुक्ति का द्वार है अर्थात इस जीवन को व्यर्थगवां देने के पश्चात अनन्त काल तक नरक की आग में सड़ना ही बाकी रह जाता है अर्थात अनंन्त म्रत्यु को प्राप्त करना जीवन की सारी उम्मीदें खत्म , इसी एक बात की स्पष्ट उदघोषणा अनेको स्थानों में हम पवित्रशास्त्र बाइबिल में पाते हैं जैसे कि प्रभु येशू मसीह कहते हैं जब तक (पैदा होने के बाद इसी जीवन में)मनुष्य नए सिरे से न जन्मे (अर्थात जल और आत्मा से न जन्मे )स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता ।।।
(यूहन्ना 3:1-10 ध्यान पूर्वक पढ़ें)lll
इसीलिए अति प्रिय बन्धुओं इस जीवन के पश्चात स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना ही मनुष्य का मुख्य लक्छ्य होना चाहिए ,जिसके लिए सर्वलोकाधिपति परम प्रधान पमात्मा परमेश्वर को प्रसन्न करना उसकी आज्ञाओं को मानना उसके अनुग्रह को प्राप्त करने हेतु  उसी के अनुरूप जीवन निर्वाह करना एक मनुष्य की प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि इन मनुष्यकृत परम्पराओं एवं समाजों में से कोई भी आपको स्वर्ग की ओर एक कदम भी चलाने में असमर्थ होते हैं ।।।
अरे अपने इस जीवन को ही लें क्या कोई भी मनुष्य या समाज या यम नियम या परम्पराएं साँख्य योग तपस्या कुछ भी करके या अपनी सोच और शुभ चिंता से अथवा आपकी सहायता करके या अपनी खुद की ताकत से आपके जीवन की घड़ी को बढाने या घटाने मैं सच्छम है??? कदापि और  कदाचित नहीं क्योंकि ये तो परम प्रधान पमात्मा परमेश्वर के अतिरिक्त किसी के लिए भी अनहोना है।।। 
फिर हम क्यों अपनी मूर्खताओं को प्राथमिकता दें,
 हम क्यों उनका भय खाएं जो हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते सिवाय इस शरीर का नाश करने के जिसका नाश कभी न कभी तो होना ही है क्योंकि कोई भी मनुष्य सदा काल के लिए इस नाशवान शरीर में रह ही नहीं सकता यही सम्पूर्ण सत्य है।।।मनुष्य या समाज अपने क्रोध में आकर इस शरीर को समय के पहिले समाप्त कर सकता है जिसे हत्या कहते हैं जिसका की दंड अति भयानक होता है हमारी सोच से भी परे।।।
हम क्यों न उस एक के भय में होकर जियें जो न केवल भौतिक रीति से हमारे जीवन को तो समाप्त कर सकने में सकच्छम है ही वरन अनन्त काल तक के लिए हमें नरक की असहनीय वेदना अर्थात अनंन्त म्रत्यु दंड देने में भी सकच्छम है ,क्योंकि वो सृजनहार परमेश्वर है वो सबमें सब कुछ कर सकता है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं हैं।।।
उसका प्रेम जितना महान है कहीं उससे अति भयंकर है उसके कोप का भाजन होना जीविते परमेश्वर के हाथों में पड़ना अति भयंकर होता है (जैसा कि हिदू मत में भी अक्सर कहा जाता है कि उसकी मार जिसमें आवाज भी नहीं होती अति भयंकर होती है)।।
अतिप्रिय बन्धुओं कुलमिलाकर हम जिस समाज में रह रहे हैं उसी में रहते हुए अपने सृजनहार परमेश्वर को प्राथमिकता देना सीखें,प्रारम्भ में हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है,परंतु धीरे धीरे समाज में आप फिर से अपनी जगह बना लेंगे जब समाज आपको भली भांति समझने लगेगा परंतु समाज के लिए परमेश्वर से पंगा ना ही लें तो बेहतर होगा आपके अपने एक ही बार प्राप्त होने वाले इस बहुमूल्य जीवन के लिए ।।।
इसीलिए पवित्र शास्त्र बाइबिल में संत पौलुस कहते हैं कि , मैं परमेश्वर के विरुद्ध उठने वाली प्रत्येक भावनाओं को अपने पैरों तले कुचल डालता हूँ
यही प्रत्येक विश्वासियों का प्रथम कर्तव्य कर्म होना चाहिए ,बेहतर होगा कि हम जीवित सच्चे परमेश्वर को अपनी बेतुकी झूटी मानवीय भावनाओं से तौलने या मापने की भयंकर भूल ना करें, क्योंकि बाइबिल हमें सिखाता है कि भावना में बहकर हमारे सर्वांग दहन बलि करने से भी उसकी आज्ञाओं को मानना ही सर्वोपरि होता है ,यही पवित्र शास्त्र बाइबिल हमें चेतावनी के साथ सिखाता है।।।

प्रिय जनों प्रभु येशू मसीह का द्वितीय आगमन अति निकट है ,हमें पवित्रता के साथ उसके आगमन की बाट जोहना चाहिये ताकि हम अनन्त काल तक उसी के संग रह सकें।
इन वचनों के द्वारा परमेश्वर आपको बहुतायक की आशीष दें।।।आमीन फिर आमीन।।।

ONLINE PRAYER "HEALING PRAYER ALL OVER OUR NATIONS", 17-05-2020 "IN ENGL...

Friday, May 15, 2020

WHAT STEALS OUR BLESSINGS

 SCRIPTURES
But the LORD said to Moses and Aaron, "Because you did not trust in me enough to honor me as holy in the sight of the Israelites, you will not bring this community into the land I give them."
           ~ Numbers 20:12 

Earthly achievements usually come with temptations. Leadership, Wealth, Politics and other successes lead achievers into vulnerable situations for temptations. Fearing competition can cause murder, wealth bring formication and arrogance....and so on.

Usually temptations lead to sinning, which affect our relationship with God. Like what happened to Moses in today's Scripture.

In this tragic moment Moses forfeited one of the greatest privileges that could have been his, that is leading the Israelites to the promised land. Just because he failed to control his temper, his most obvious character flaw. He ignored what God told him to do to get water. Instead, in anger he did it his way.

Do you have a fatal flaw — one weakness that could undo all your dreams if you give in to it? Most of us do. But by recognizing it and facing it squarely, we can take precautions to prevent ourselves from giving in to it. And we can ask God to help us to avoid the temptations that weaken our resolve.
 HALLELUJAH

            ~ PRAYER ~
Almighty Father, Thank You for all the successes You have given us in this world. Dear Lord, we need to be achievers in life. Let The Holy Spirit Help us to overcome all the temptations in whichever way they come. In Jesus Name. Amen .

Sermon with Evening Prayer, "IRON SHARPENS IRON" II"लोहा लोहे को तेज कर...

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