Saturday, June 6, 2020

पवित्र बनो "जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल चलन में पवित्र बनो"। (1पतरस1:15)

क्योंकि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करता है की - सबसे मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा। (1 पत. 3:11, भज. 34:14)
(इब्रानियों 12:14)

अतिप्रिय बंधुओं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए, उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे क्योंकि वो भला है और उसकी करुणा सदा की है lll

➦ प्रियजनों समस्त प्राणियों का अपने मूल स्वभाव से विपरीत आचरण, परमेश्वर और उसके राज्य और उसकी प्रकृति के विरोध में किया जाने वाला प्रत्येक कार्य चाहे उसे करने वाला मनुष्य हो अथवा कोई भी प्राणी क्यों ना हो पाप में गिना जाता है और हम देख रहे हैं कि ऐसा करना दरअसल उस प्रत्येक प्राणी के स्वभाव में आ गया है, परन्तु जैसा मैंने प्रारम्भ में कहा कि अपने मूल स्वभाव से विपरीत अर्थात इस जगत के प्रत्येक प्राणियों का मानव सहित मूल स्वभाव सृजन के समय कुछ और ही था, वरन यूँ कहें कि अपने सृजनहार के अनुरूप और अनुकूल और पाप रहित एवं उत्तम था, तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी, क्योंकि  यही परमेश्वर कि सृष्टि का अन्तरिम सत्य है अर्थात इस जगत के प्रत्येक प्राणियों के मूल स्वभाव में बदलाव  कालांतर में ही हुआ है और सब के सब बदल गए हैं ll
हम समस्त मानव जो कभी परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर की समानता और स्वरूप में सृजे गए थे आज अंधकार से आच्छादित होकर इस संसार की घोर सांसारिकता की अंधी गलियों में इतनी गहराई से  भटक गए हैं कि हमें आज इतना भी नहीं सूझता है कि इस जगत के सम्पूर्ण मानव जाती एक ही कुल गोत्र और जाति के हैं, हमारी रगों में एक ही व्यक्ति का खून दौड़ रहा है, इस सम्पूर्ण सत्य को पूरी तरह से भुलाकर  एक दूसरे का सर्वनाश करने पर तुले हुए हैं, हत्या करने प्राण लेने के बहाने ढूंढते हैं और तो और इस जगत की एक तुच्छ सी संपत्ति के लिए एक मनुष्य अपनी ही माँ की कोख से उत्पन्न अपने ही खून का बेरहमी से क़त्ल कर देता है और उसका उसे जरा भी पछतावा भी नहीं होता है और समाज एक दूसरे का बुरा करने की इस ओछी मानसिकता को ही  बुद्धिमानी, चतुराई और अधिकार और जीवन शैली मानता  है, आज हम किस तरह के शर्मनाक दौर से गुजर रहे है इसका अंदाजा इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि जिस व्यभिचार को पवित्र शास्त्र बाइबिल में मृत्यु के योग्य महा पाप माना गया है, वही व्यभिचार अनेकों देशों में कानूनन सही और उचित ठहरा दिया गया है ,एक देश के लिया इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है ???
यह जगत इतने अंधकार की दशा से कभी नहीं गुजरा होगा जैसा की हम इस अंतिम युग में देख और सुन रहे हैं, कभी बैठ कर विचार किया आपने कि जो इंसान अपने ही परम पवित्र निर्दोष निष्कलंक सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के स्वरूप और समानता में सृजा गया था वही मानव आज अपने पतन के इतने गर्त मैं कैसे पहुँच गया है??
निःसंदेह विचार नहीं किया होगा क्योंकि जिसने भी विचार करने की कोशिश की, उसे एक अज्ञात शक्ति ने जिसे पवित्र शास्त्र बाइबिल में  इस संसार का ईश्वर कहा गया है उसी धूर्त ने इस जगत में सुखी जीवन जीने का वास्ता देकर सारी काली करतूतों को लीगल अर्थात जायज ठहराकर मनुष्य को इतना मतिभ्रमित कर दिया है कि,मनुष्य नश्वर शरीर के छणिक सुख की प्राप्ति के लिए बिना विचारे कुछ भी करने पर उतारू हो जाता हैll परन्तु आज परमेश्वर का आत्मा अर्थात पवित्रात्मा हमसे चीख चीखकर कह रहा है- मन फिराओ क्योंकि इस भौतिक जगत का अंत और परमेश्वर का राज्य अत्यंत निकट आ गया है lll
प्रियजनों क्या आप जानते हैं आज हम मानव ऐसे क्यों हैं ?? पवित्र शास्त्र बाइबिल में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों की नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है
(रोमियो 6:16)
हाँ प्रियजनों यही तो हुआ है आज सम्पूर्ण मानव जातियों को, कि उसने उस धूर्त अत्याधिक शातिर, सकल धर्म का बैरी, परमेश्वर विरोधी शैतान की आज्ञा मानने के लिए अपने आप को दासों के समान सौंप दिया है, जिसका की अंत मृत्यु है,अनंत मृत्युll अर्थात अनंत काल तक के लिए उसी शैतान के साथ नर्क कि आग में जलते रहना तड़पते और किलपते रहना ll    प्रियजनों भले ही इस जगत में जिसका कि वह शैतान खुद को खुदा घोषित कर चूका है और अपनी अंधकार की सामर्थ से मनुष्यों को क्षण भंगुर सुख सुविधाओं से भर भी दे तो भी ऐसों का अंत बड़ा ही भयानक और दर्दनाक होगा इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकता lll
वैसे भी इस जगत की उत्पत्ति से लेकर अब तक सम्पूर्ण मानव जाति अदन की वाटिका में किये उस महा विद्रोह  महा विश्वासघात का दुष्परिणाम ही भुगत रहे हैं ,जो हमने प्रथम पुरुष आदम में बीज रूप में रहकर अपने ही सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के विरोध में किया था ll भले ही शैतान ने हमें बहकाने में कोई कसर ना छोड़ी थी, फिर भी सम्पूर्ण मानव जाति को परमेश्वर ने ठीक अपनी ही तरह सारे बंधनों से मुक्त और  स्वतन्त्र बनाया था इसीलिए इस महापाप को करने के लिए वो किसी भी तरह से दवाब में नहीं था अर्थात पाप करना उसका अपना निर्णय था अर्थात पाप करना उसकी मज़बूरी कतई नहीं था वह किसी के बन्धन में नहीं था वह शैतान के इस घृणित ऑफर को ठुकराने के लिए भी पूरी तरह से स्वतन्त्र था परन्तु दुर्भाग्य ही कहें या विडंबना कहलो कि प्रथम पुरुष ने यह भी ना सोचा कि उसका यह एक निर्णय उसी एक में बीज रूप में सृजी गयी सम्पूर्ण मानव जाति को प्रभावित करेगा और पतन के गर्त में पहुंचा देगा और वही हुआ भी कि आज कोई भी मनुष्य क्यों ना हो उसने कभी अपने आचरण में कोई पाप ना भी किया हो फिर भी वह पापी ठहरता है, क्योंकि आदम का वह विश्वासघात रूपी महापाप आज उसके डी एन ए के द्वारा सम्पूर्ण मानव जाति में,एक स्वभाव के रूप में ट्रांसमीट अर्थात हस्तांतरित हो गया है, इसीलिए आज कोई भी मनुष्य क्यों ना हो भले ही वह कर्म पापी ना हो, फिर भी वह जन्म पापी अर्थात पाप से उत्पन्न निश्चित तौर पर कहलाता है,और उसे इसी पाप स्वभाव की भारी कीमत आदिकाल से आज तक चुकानी पड़ रही है अर्थात इस जगत की वे तमाम असाध्य अनाम बीमारियां अथवा असाध्य रोग जो कभी गरीब और  अमीर,शुद्ध अशुद्ध, नहीं देखता और किसी पर भी मृत्यु का कहर बनकर टूट पड़ता है ये सब अपने सृजनहार से किया गया विश्वासघात का ही तो दुष्परिणाम हैं lll
और वे तमाम प्राकृतिक विपदाएं एवं आपदाएं जो शहर के शर देशों को तक उजाड़ देती हैं ये सब भी महापाप का ही परिणाम स्वरूप है lll
ये सब कुछ भी नहीं देखती हैं किसी को भी अपनी चपेट में लेकर असहनीय वेदनाओं से भर देती हैं और मृत्यु के भयानक अतिपीड़ादायक बन्धन से बांध देती हैं, किसी भी मनुष्य को अकारण ही तकलीफों में डाल देती हैं ll और फिर पवित्र शास्त्र बाइबिल में भी तो परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन  अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।
(रोमियो 5:12)
और यह भी कि - इसलिए कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं (रोमियों 3:23) प्रियजनों यही सम्पूर्ण सत्य भी है और यही नहीं सम्पूर्ण मानव जातियों में जो तरह तरह के मानसिक शारीरिक और आत्मिक व्याधियां, जिनसे मानव स्वभाव में उत्पन्न एक विषैला परिवर्तन जिसके कारण एक मानव का दूसरे मानव के खून का प्यासा होना मानव का मानव को ही सर्वनाश करने की अथक कोशिशों का ये सिलसिला उफ़! कितना भयानक है जन्म पाप स्वभाव का यह दुष्परिणामll सचमुच हम समस्त मानव जातियों को अथाह सागर से भी गहिरा प्रेम करने वाला हमारा सृजनहार पिता परमेश्वर स्वयं भी मानव की इस दुर्दशा को देखकर अपने ह्रदय से अत्यधिक पीड़ित होकर बिलखकर रोया होगा, क्योंकि यह जन्म स्वभाव रूपी पाप से मुक्ति किसी भी मनुष्य के लिए किसी भी असाध्य से असाध्य रोगों से भी असाध्य होता है जब तक की स्वयं सृजनहार परमात्मा परमेश्वर अपने अनुग्रह से प्रत्यक्ष रीति से इसका उपाय ना करें क्योंकि वचन भी तो यही कहता है कि - परन्तु पवित्र शास्त्र (परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन) ने सब (अर्थात सम्पूर्ण मानव जातियों) को पाप के अधीन कर दिया है ताकि (परमेश्वर की) वह प्रतिज्ञा जिसका आधार येशु मसीह (अर्थात उद्धारकर्ता अभिषिक्त एक अर्थात उद्धार करने के लिए मुक्ति देने के लिए परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का चुना हुआ एक) पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिए पूरी हो जाये (गलातियों 3:22)lll
उपरोक्त वचन यह प्रमाणित कर देता है कि सब के सब पापी हैं और इस महापाप स्वभाव से मुक्ति स्वयं परमेश्वर के उपाय किये बगैर असंभव है अनहोना है ll
फिर भी यदि कोई घमण्ड करे और कहे कि मैं तो जन्म से ही उच्च कुल गोत्र और जाति का ठहरा मुझ में कोई पाप नहीं मुझे किसी मुक्तिदाता की आवश्यकता नहीं तो ऐसों के लिए परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन चेतावनी देकर उद्घोषणा करता है कि - यदि हम कहें  कि हममें कुछ भी पाप नहीं , हम अपने आप को धोखा देते हैं; और हम में सत्य नहीं और यदि हम (मनुष्य ) अपने पापों को मान लें तो वह (अर्थात परमेश्वर ) हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है, यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया है तो उसे (अर्थात परमेश्वर को) झूटा ठहराते हैं और उसका वचन हममें नहीं है (1यूहन्ना 1:8-10)lll
कुलमिलाकर सम्पूर्ण मानव जाति पापी है और उनका उत्तम से उत्तम किया गया कार्य या कर्म परमेश्वर कि दृष्टि में कंटीली झाड़ियों की तरह है अर्थात प्रयोजनहीन है दूसरों की तो छोड़ो स्वयं का उद्धार कराने के लिए भी असक्षम है (पढ़िए मीका 7:4,यशायाह 1:6,अय्यूब 14:4)lll
और ऐसा ही कुछ भाव अपने भारतवर्ष के अन्य ग्रंथों भी हम पाते हैं जो कि, उपरोक्त बातों की पुष्टि करते हुए से  प्रतीत होते हैं जैसे कि उदाहरण के लिए हितोपदेश पर हम ध्यान दें तो मित्र लाभ  17 में हम पाते हैं कि - न धर्मशास्त्रां पठनीति कारणं, न चापि  वेदाध्ययनं दुरात्मनः l स्वभावेवात्र तथाSति रिच्यते, यथा प्रकृत्या मधुरं गवां पयः ll
अर्थात मनुष्य इसलिए भ्रष्ट (पापी) नहीं कहलाता कि उसने धर्मशास्त्र नहीं पड़े अथवा वेदाध्ययन नहीं किया ,वरन अपने स्वाभाविक गुणों के कारण ही वह ऐसा है - जिस प्रकार गाय का दूध स्वभाव से ही मधुर होता है ll अर्थात मनुष्य अपने स्वभाव से ही भ्रष्ट अर्थात पापी है अर्थात यह पैतृक गुण है जैसा कि वचन कहता है
इसीलिए वैष्णव ब्राम्हण अपने गायत्री मंत्रोच्चारण के पश्चात् यह प्रार्थना करते हैं कि - पापोहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः l
त्राहिमाम पुण्डरीकच्छाम सर्व पाप हर हरे ll
अर्थात मैं तो एक पापी ,पाप कर्मी, पापिष्ट तथा पाप से उत्पन्न हूँ l हे कमलनयन परमेश्वर, मुझे बचा लो, और सारे पापों से मुक्त करो ll
सोचिये खुद को उच्च कुल गोत्र और जाति का कहने वाले मनुष्यों का भी ये हाल है, क्योंकि यही मानव जाती का सम्पूर्ण सत्य है और तो और ऋग्वेद 7:89:5 भी पाप के विषय यही उद्घोषणा करता है कि - यह परमेश्वर कि व्यवस्थाओं एवं उसके धर्म (आज्ञाओं अर्थात वचन ) का उल्लंघनकारी स्वभाव है
अर्थात प्रत्येक मनुष्य में पाप एक स्वभाव के रूप में वर्तमान है, इसीलिए तो श्रीमद भगवत गीता भी प्रामाणिक तौर पर कहती है कि -
न तदस्ति पृथिवियां वा दिवि देवेषु वा पुनःl
सत्त्वं प्रकृतिजैर्मुक्तं यदेभिः स्यात्त्रिभिर्गुणैः ll18:40ll
अर्थात इस पृथ्वी में, आकाशों अथवा उच्चतम लोकों में अर्थात देवताओं में या प्रकृति से उत्पन्न कोई भी ऐसा व्यक्तित्व विद्यमान नहीं जो माया के अर्थात प्रकृति के त्रिगुण बंध से मुक्त हो (स्मरण रहे प्रकृति के अर्थात माया के त्रिगुण बंध सात्विक और रजोगुण के साथ में सबसे निचला गुण तत तामसम या तमस अथवा सुकृत का होता है जो पाप का गुण कहलाता है, कुल मिलाकर सब के सब पाप स्वभाव से ग्रसित अथवा बंधे हुए हैं )
और पवित्र शास्त्र बाइबिल में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन उद्घोषणा करता है कि - पाप की मजदूरी तो मृत्यु है " (रोमियों 6:23)lll और यही बात मुण्डक (मंडल) ब्रम्होपिनिषद 2:4 मैं भी हम पढ़ सकते हैं कि "पाप फल नरकादिमाSस्तु" अर्थात पाप का प्रतिफल नर्क अर्थात अनंत मृत्यु है lll
अर्थात सब के सब अथवा सम्पूर्ण मानव जाति ही अनंत मृत्यु के अधीन हैं और इस पाप स्वभाव से मृत्यु के पाश्विक बंधन से मुक्त होना मनुष्य के अपने वश कि बात तो कतई नहीं है यह प्रमाणित हो चुका है, इसीलिए पवित्र शास्त्र बाइबिल में एक से अधिक स्थानों पर आया है कि, परमेश्वर स्वयं कह रहे हैं कि "मैं  तुम्हारा पवित्र करने वाला परमेश्वर हूँ "
यदि मनुष्यों से यह संभव होता तो परमेश्वर ऐसा नहीं कहते lll
इसीलिए परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन यह भी कहता है कि- चाहे तू अपने को सज्जी से धोये, और बहुत सा साबुन भी प्रयोग करे तौभी तेरे अधर्म का धब्बा मेरे साम्हने बना रहेगा (यिर्मयाह 2:22)
वहीँ मुंडकोपनिषद 3:1:8 भी स्पष्ट रीति से कहता है कि -
न चछुवा गृह्यते नापी वाचा l
नान्यैः देवैः तपसा कर्मण वा ll
अर्थात ना नेत्र, ना वचन ना तपस्या ना कर्म और ना किसी अन्य युक्ति से वह प्राप्त होता है lll
और ठीक ऐसा ही हम आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थ  विवेक चूड़ामणि
में पाते हैं लिखा है कि -
न योगेन न सांख्येन ,कर्मणा नो  न विद्यया l ब्रम्हात्मैकत्व बोधेन मोछः सिध्यते नान्यथा ll
अर्थात मोक्ष अथवा मुक्ति ना तो योगा करने से या साँख्य अर्थात ब्रम्ह के तत्व चिंतन से, और ना ही कर्म तथा विद्या लाभ से, परन्तु परमात्मा और जीवात्मा के एकत्वबोध से सिद्ध होता है lll
और यह एकत्व बोध केवल परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के अनुग्रह से ही संभव है अन्य कोई दूसरा उपाय है ही नहीं इसीलिए तो परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - क्योंकि हम (अर्थात सम्पूर्ण मानव जाति)भी पहिले, निर्बुद्धि, और आज्ञा न मानने वाले, और भ्रम में पड़े हुए, और रंग रंग के अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्व में थे, और बैरभाव, और डाह करने में जीवन निर्वाह करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे। पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की कृपा, और मनुष्यों पर उसकी प्रीति प्रगट हुई।     तो उस ने हमारा उद्धार किया: और यह धर्म के कामों के कारण नहीं,जो हम ने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नए जन्म के स्नान,और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ। जिसे उस ने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उंडेला। जिस से हम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस बनें।
(तीतुस 3:3-7)
सो उसके अनुग्रह से ही मनुष्य प्रभु येशु मसीह के द्वारा उद्धार अर्थात पाप स्वभाव से पूर्ण मुक्ति पा सकता है इस जगत मैं मुक्ति का अन्य कोई उपाय है ही नहीं lll
प्रिय जनों यही तो परमेश्वर का सम्पूर्ण मानव जातियों के प्रति सच्चे प्रेम का वास्तविक प्रगटीकरण है क्योंकि वचन ही फिर से यह कहता है कि -
क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया। और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।परन्तु जो सच्चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।
(यूहन्ना 3:16-21)
अब हमें एक पल भी गंवाए बिना अपने मसीह यीशु के पास लौटना है हम कहीं भी क्यों ना हों कैसे भी क्यों ना हो बस लौटना है, मन फिराना है, अपने अपने वस्त्रों को धो लेना है,क्योंकि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जिवंत वचन प्रभु येशु मसीह कहता है कि-
मैं अलफा और ओमेगा, पहिला और पिछला, आदि और अन्त हूं।  धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से हो कर नगर में प्रवेश करेंगे। पर कुत्ते, और टोन्हें,और व्यभिचारी,और हत्यारे और मूर्तिपूजक,और हर एक झूठ का चाहने वाला, और गढ़ने वाला बाहर रहेगा॥ मुझ यीशु ने अपने स्वर्गदूत को इसलिये भेजा, कि तुम्हारे आगे कलीसियाओं के विषय में इन बातों की गवाही दे: मैं दाऊद का मूल, और वंश,और भोर का चमकता हुआ तारा हूं॥और आत्मा,और दुल्हिन दोनों कहती हैं,आ; और सुनने वाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले॥
(प्रकाशित वाक्य 22:13-17)
प्रियजनों इस संसार का अंत निकट है, मनुष्य पाप करने के चलते नहीं वरन अपने जन्म स्वभाव से ही अपवित्र है, इसीलिए मनुष्य अनंत मृत्यु का पात्र है,और उसको अपने पापो से बुराईयो से मन फिराने की आवश्यकता है,और जीवित परमेश्वर ने हमें अपनी संगति में पवित्र होने के लिये बुलाया है, इसलिये प्रेरित पतरस कहते है, जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है वैसे ही तुम भी अपने सारे चाल चलन में पवित्र बनोlll
➦ प्रेरितो की कलीसिया एक सामर्थी कलीसिया थी क्योकि वो परमेश्वर की आज्ञाओ के प्रति आज्ञाकारी थे, जैसा प्रभु यीशु ने उन्हे करने को कहा वैसा ही उन्होने किया, पवित्र शास्त्र कलिसिया को मसीह की दुल्हन कहता है, यदि दुल्हन उसी की तरह पवित्र न हो तो दुल्हा निःसंदेह उनको स्वीकार नही करेगा, ठीक वैसे ही यदी हम अपने सारे चाल चलन में पवित्र न बने तो प्रभु यीशु हमें स्वर्गीय राज्य के लिये स्वीकार नही करेगे, इसीलिये यह आवश्यक है कि हम अपने पापो से अभी समय रहते मन फिरा कर परमेश्वर के भय में अपना जीवन जियें, क्योकि प्रभु यीशु ने साफ कहा है, स्वर्ग के राज्य में केवल वही प्रवेश करेगा, जो स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलेगा, इसलिये वचन को केवल सुनने वाले ही नही, परन्तु वचन पर चलने वाले बनें lll परमेश्वर के आज के इस अद्भुद सन्देश के माध्यम से स्वयं परमेश्वर आपको बहुतायक की आशीषों से भर देlll आमीन फिर आमीनlll

अतिप्रिय बंधुओं यह सर्वनाश के पहिले की अंतिम चेतावनी है अर्थात जगत ने मन ना फिराया तो सर्वनाश निश्चित है ???



क्योंकि परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - जो कुछ गाजाम नाम टिड्डी से बचा; उसे अर्बे नाम टिड्डी ने खा लिया। और जो कुछ अर्बे नाम टिड्डी से बचा, उसे येलेक नाम टिड्डी ने खा लिया, और जो कुछ येलेक नाम टिड्डी से बचा, उसे हासील नाम टिड्डी ने खा लिया है। हे मतवालो, जाग उठो, और रोओ; और हे सब दाखमधु पीने वालो, नये दाखमधु के कारण हाय, हाय, करो; क्योंकि वह तुम को अब न मिलेगा॥ देखो, मेरे देश पर एक जाति ने चढ़ाई की है, वह सामर्थी है, और उसके लोग अनगिनित हैं; उसके दांत सिंह के से, और डाढ़ें सिहनी की सी हैं। उसने मेरी दाखलता को उजाड़ दिया, और मेरे अंजीर के वृक्ष को तोड़ डाला है; उसने उसकी सब छाल छील कर उसे गिरा दिया है, और उसकी डालियां छिलने से सफेद हो गई हैं॥जैसे युवती अपने पति के लिये कटि में टाट बान्धे हुए विलाप करती है, वैसे ही तुम भी विलाप करो। यहोवा के भवन में न तो अन्नबलि और न अर्घ आता है। उसके टहलुए जो याजक हैं, वे विलाप कर रहे हैं। खेती मारी गई, भूमि विलाप करती है; क्योंकि अन्न नाश हो गया, नया दाखमधु सूख गया, तेल भी सूख गया है॥ हे किसानो, लज्जित हो, हे दाख की बारी के मालियों, गेहूं और जव के लिये हाय, हाय करो; क्योंकि खेती मारी गई है। दाखलता सूख गई, और अंजीर का वृक्ष कुम्हला गया है। अनार, ताड़, सेव, वरन मैदान के सब वृक्ष सूख गए हैं; और मनुष्यों का हर्ष जाता रहा है॥ हे याजको, कटि में टाट बान्ध कर छाती पीट-पीट के रोओ! हे वेदी के टहलुओ, हाय, हाय, करो। हे मेरे परमेश्वर के टहलुओ, आओ, टाट ओढ़े हुए रात बिताओ! क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर के भवन में अन्नबलि और अर्घ अब नहीं आते॥उपवास का दिन ठहराओ, महासभा का प्रचार करो। पुरनियों को, वरन देश के सब रहने वालों को भी अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में इकट्ठे कर के उसकी दोहाई दो॥ उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन हो कर आएगा।
(योएल 1:4-15)

अतिप्रिय बंधुओं परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा एलोहीम का करोड़ों करोड़ों धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए, उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे, क्योंकि वह भला है उसकी करुणा सदा की हैlll

प्रियजनों जैसा कि मैं बार बार कह रहा था कि हम इस अंतिम युग के अंतिम पड़ाव में रह रहे हैं, जिस किसी मनुष्य ने अब भी अपना मन ना फिराया और खुद को सम्पूर्ण आत्मा से प्रभु परमेश्वर येशुआ मेसियाख के पवित्र चरणों में पूरी ईमानदारी से अर्पित ना किया तो सर्वनाश निश्चित है, क्योंकि यह घुटने टेककर अपने किये पर पछताने और पश्चाताप करने का, अर्थात समस्त पाप स्वभाव से मन फिराने का समय है,
लोगों ने कोरोना महामारी को बहुत ही हल्के में लिया था, उसके दुष्परिणाम हम अपनी आँखों से देख ही रहे हैं और तभी अचानक से एक दूसरी आपदा ने हमारी इस भूमि पर हमला कर दिया है, इसे भी हल्के में ना लें क्योंकि जिन्होंने पवित्रशास्त्र बाइबिल का भलीभांति अध्ययन किया है वे जानते हैं की हम सभी अर्थात इस जगत के सम्पूर्ण मानव जाति सर्वनाश के कगार पर खड़े हुए हैं, प्रभु येशुआ के द्वितीय आगमन के पूर्व पश्चाताप और विलाप के साथ मन फिराने का एक अंतिम अवसर अनुग्रह से हमें प्रदान किया गया है और परम प्रधान परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए कह रहा है कि-
और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना॥
(लूका 19:44)
प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।
(2 पतरस 3:9)
मैं ने उस को मन फिराने के लिये अवसर दिया, पर वह अपने व्यभिचार से मन फिराना नहीं चाहती।
(प्रकाशित वाक्य 2:21)
हाँ प्रियजनों यही सम्पूर्ण सत्य है सम्पूर्ण जगत के मानव मात्र का कि वह अपने ही बकवास दम्भ में ज़ी रहा है अथवा जीने कि कोशिश कर रहा है वहीं सकल धर्म का बैरी, परमेश्वर का परम विरोधी दुष्ट अति धूर्त शैतान सम्पूर्ण मानव जाति को सर्वनाश के कगार पर लाकर हमें जीने ना देने की अपनी ही कल्पना को साकार करने की धुन में है और परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर ने सिर्फ अनुमति दी है ताकि मनुष्य मात्र को अपनी वास्तविकता से रूबरू करा सके उर्दू में कहा जाये तो वह इंसान को उसकी ओकात याद दिलाना चाहता है फिर भी वह हमारा सृजनहार है इसीलिए अब भी वह हमसे अथाह सागर से भी गहिरा प्रेम करता है क्योंकि वह हमारा बचाने वाला भी है, हमें इस आपदा से बचाना भी चाहता है, परन्तु विडंबना ही कहलें कि मनुष्य उसकी चेतावनियों को तुच्छ  जानकर प्राप्त अवसरों को खोता चला जा रहा है, और कुछ लोग तो इसी दम्भ में ज़ी रहे हैं कि मैं तो प्रभु का हूँ भाई, मुझे क्या जरूरत है मन फिराने की क्योंकि मैं तो बचपन से मसीही कहलाता हूँ क्योंकि बचपन से मेरा नाम पॉल है, जॉन है, पीटर है, जोसेफ है हम तो अपने नाम से ही बच जायेंगे अर्थात प्रभु हमारे नामों के अनुसार ही हमें बचा लेंगे परन्त्तु जिसके कान हों वे सुन लें की यह शताब्दी का सबसे बड़ा जोक अर्थात मजाक ठहरेगा, सचमुच यह अत्याधिक हास्यास्पद बात है और मूर्खतापूर्ण भी क्योंकि ऐसा कहकर लोग बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में ज़ी रहे हैं, क्योंकि नामधारी मसीहियों का भी वही हाल होना है जो शेष जगत का और बचेंगे केवल वही जिन्होंने जल और आत्मा से नए जन्म की  पारलौकिक, परम अनुभूति को पा लिया है और जिन्होंने परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर प्रभु येशुआ मेसियाख से पवित्रात्मा के द्वारा एकाकार कर लिया हैlll कुल मिलाकर जिन्होंने प्राप्त अवसर को बहुमूल्य समझकर अपने पाप स्वभाव से मन फिरा लिया हो (यूहन्ना 3:1-10, तीतुस 3:3-10,)
अर्थात रोमियों कि पत्री अध्याय 8 के 1 से 14 तक उद्घोषित परम  प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन के अनुसार चलता हो (उपरोक्त वचनों को अत्याधिक ध्यान पूर्वक पढें)
क्योंकि अब देर ना होगी हमें अपने आपको रोमियों की  पत्री 12:1-7 में  लिखे हुए वचनों के आधार पर खुद को पूरी रीति से प्रभु के चारणों में अर्पित करने का अवसर है ये, और प्रभु परमेश्वर स्वयं कहते हैं कि-
और अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। (आमो. 5:13, कुलु. 4:5)
(इफिसियों 5:16)
अर्थात यही है वो अंतिम अवसर जो इस जगत के लोगों को अपने अनुग्रह से प्रदान किया गया है, अगर अब भी इस अवसर को तुच्छ सा जानकर अपना मन ना फिराएं तो सर्वनाश निश्चित है, ऐसा मैं नहीं वरन परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन कहता है lll
प्रियजनों योएल भविष्यद्वक्ता ने हजारों साल पूर्व इन्हीं दिनों को सर्वशक्तिमान कीओर से सर्वनाश का दिन कहा है जैसा कि इसी सन्देश के प्रारम्भ में अति स्पष्ट रीति से  उल्लेखित है, और  इन्हीं बातों की पुष्टि पवित्र शास्त्र बाइबिल के ही अंतिम पुस्तक प्रकाशित वाक्य में भी अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए की गयी है जो कि  आज से तक़रीबन  2000 साल पाहिले, प्रभु येशु मसीह के स्वर्गारोहण के पश्चात्, पहली ही शताब्दी में पवित्रात्मा के द्वारा यूहन्ना प्रेरित ने लिखीं लिखी थीं, और वे सारी बातें ही आज अक्षरशः पूरी होती दिखाई दे रहीं हैं, इसीलिए आज का हर एक सच्चा मसीही, (अर्थात मसीही धर्म का अनुयायी नहीं वरन) मसीह का सच्चा अनुयायी, अत्याधिक व्याकुल है, वह भी खुद अपने लिए नहीं वरन इस जगत के लिए, जो अनजाने ही विनाश की  ओर अति वेग से जा रहा है lll
प्रिय जनों बहुतों ने अभी भी नम्र और दीन होकर मन फिराने अपने किये पर सच्चे मन से पश्चाताप करने के बजाय, अपने अपने हृदयों को अब भी उद्धारकर्ता प्रभु येशु मसीह के प्रति अत्यधिक कठोर कर रखा है क्योंकि मसीह यीशु चंद मुट्ठी भर लोगों या किसी एक कुल या जाति की बपौती नहीं है वरन वह तो सम्पूर्ण मानव जाति का उद्धारकर्ता है इसीलिए किसी मसीहियों की प्रार्थना पर निर्भर ना रहकर प्रत्येक मानव जाति का प्रथम कर्तव्य है, कि मन फिराकर खुद को उसके पवित्र चरणों में अर्पित कर दें परन्तु मनुष्य है कि अपने अपने किये पर शर्मसार होने की बात तो दूर वरन उन्हें रत्ती भर भी रंज नहीं, वरन अपने सृजनहार पर ही सवाल खड़े कर देने पर उतारू हैं, और अभी भी सृजनहार प्रभु परमेश्वर यीशु मसीह को सिर्फ तथाकथित ईसाईयों का कुल देवता समझकर, किसी और परमात्मा से पूछ रहे हैं कि वह इस सर्वनाश की अनुमति क्यों दे रहा है ???
प्रियजनों याद रखें इंसानों के बर्दाश्त की एक हद होती है, तो निश्चित ही मनुष्यों को सृजने वाला परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की भी सहने की एक हद है, परन्तु उसकी दया का जो असीमित है जिसका कोई अंत नहीं हद नहीं क्योंकि वह तो प्रेम है, इसीलिए तो हम अब तक बचे हुए हैं, और निर्मूल नहीं हुए हैं, स्मरण रहे यह तो प्रारम्भ है अंत का, यही समझो कि यही अंतिम चेतावनी है, हमारे मन फिराने के लिए क्योंकि अभी तो आने वाली हैं वे बातें जिन्हें देखकर मनुष्य पहाड़ों से कहेगा कि मेरे ऊपर गिर जाओ ताकि मैं मर जाऊँ, और  इस अति दर्दनाक मंजर से होकर गुजरने से मौत ही भली है, परन्तु लिखा है उस दिन तुमको मौत भी ना मिलेगी, क्योकि जिंदगी और मौत तो उसी परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के हाथ में निहित है, वही तुम्हारे ह्रदय कि कठोरता के अनुसार उस आने वाले अति भयानक दर्द से होकर गुजरने देगा वह भी मौत  दिये बगैर, क्योंकि मौत तो आसान सा रास्ता होता है दर्द से मुक्ति का, परन्तु उन दिनों में मनुष्य मरने में भी नाकाम होगा, ऐसे दिन निःसंदेह आने वाले हैं क्योंकि ऐसा मैं नहीं, वरन पवित्र शास्त्र बाइबिल में, परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन हमारे उद्धारकर्ता और प्रभु, यीशु मसीह ने अति स्पष्ट रीति से उद्घोषणा कर दी है, अब किसी भी झूठे भविष्यद्वक्ताओं के लिए अपने नाम और शोहरत के लिए फ़ालतू में चोंच चलाने का कोई मतलब नहीं निकलता वरन ऐसे झूठे लोगों को भी खुद को पवित्रात्मा को पूरी ईमानदारी से सौंप दो और परमेश्वर के मर्म को अनुभव से जानलो, फिर से कहता हूँ अवसर को बहुमूल्य समझो दीन बहुत ही बुरे हैं।
(रोमियों 12:1-7,एवं इफिसियों 5:16)

परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर अपने इस अद्भुद सन्देश के द्वारा आपके ज्ञान चक्षुओं को खोल दे और परम सत्य का ज्ञान दे lll आमीन फिर आमीन lll

Cast thy burden upon the Lord, and he shall sustain thee.


Psalm 55:22

Care, even though exercised upon legitimate objects, if carried to excess, has in it the nature of sin. The precept to avoid anxious care is earnestly inculcated by our Savior, again and again; it is reiterated by the apostles; and it is one which cannot be neglected without involving transgression: for the very essence of anxious care is the imagining that we are wiser than God, and the thrusting ourselves into his place to do for him that which he has undertaken to do for us. We attempt to think of that which we fancy he will forget; we labor to take upon ourselves our weary burden, as if he were unable or unwilling to take it for us. Now this disobedience to his plain precept, this unbelief in his Word, this presumption in intruding upon his province, is all sinful. Yet more than this, anxious care often leads to acts of sin. He who cannot calmly leave his affairs in God’s hand, but will carry his own burden, is very likely to be tempted to use wrong means to help himself. This sin leads to a forsaking of God as our counselor, and resorting instead to human wisdom. This is going to the “broken cistern” instead of to the “fountain;” a sin which was laid against Israel of old. Anxiety makes us doubt God’s loving kindness, and thus our love to him grows cold; we feel mistrust, and thus grieve the Spirit of God, so that our prayers become hindered, our consistent example marred, and our life one of self-seeking. Thus want of confidence in God leads us to wander far from him; but if through simple faith in his promise, we cast each burden as it comes upon him, and are “careful for nothing” because he undertakes to care for us, it will keep us close to him, and strengthen us against much temptation. “Thou wilt keep him in perfect peace whose mind is stayed on thee, because he trustee in thee.” 

NO WEAPON FORMED AGAINST US WILL EVER PROSPER, 06-06-2020

Sunday, May 31, 2020

जीवन कि रोटी

विषय - अतिप्रिय बंधुओं यह सर्वनाश के पहिले की अंतिम चेतावनी है अर्थात जगत ने मन ना फिराया तो सर्वनाश निश्चित है ???

क्योंकि परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि - जो कुछ गाजाम नाम टिड्डी से बचा; उसे अर्बे नाम टिड्डी ने खा लिया। और जो कुछ अर्बे नाम टिड्डी से बचा, उसे येलेक नाम टिड्डी ने खा लिया, और जो कुछ येलेक नाम टिड्डी से बचा, उसे हासील नाम टिड्डी ने खा लिया है। हे मतवालो, जाग उठो, और रोओ; और हे सब दाखमधु पीने वालो, नये दाखमधु के कारण हाय, हाय, करो; क्योंकि वह तुम को अब न मिलेगा॥ देखो, मेरे देश पर एक जाति ने चढ़ाई की है, वह सामर्थी है, और उसके लोग अनगिनित हैं; उसके दांत सिंह के से, और डाढ़ें सिहनी की सी हैं। उसने मेरी दाखलता को उजाड़ दिया, और मेरे अंजीर के वृक्ष को तोड़ डाला है; उसने उसकी सब छाल छील कर उसे गिरा दिया है, और उसकी डालियां छिलने से सफेद हो गई हैं॥जैसे युवती अपने पति के लिये कटि में टाट बान्धे हुए विलाप करती है, वैसे ही तुम भी विलाप करो। यहोवा के भवन में न तो अन्नबलि और न अर्घ आता है। उसके टहलुए जो याजक हैं, वे विलाप कर रहे हैं। खेती मारी गई, भूमि विलाप करती है; क्योंकि अन्न नाश हो गया, नया दाखमधु सूख गया, तेल भी सूख गया है॥ हे किसानो, लज्जित हो, हे दाख की बारी के मालियों, गेहूं और जव के लिये हाय, हाय करो; क्योंकि खेती मारी गई है। दाखलता सूख गई, और अंजीर का वृक्ष कुम्हला गया है। अनार, ताड़, सेव, वरन मैदान के सब वृक्ष सूख गए हैं; और मनुष्यों का हर्ष जाता रहा है॥ हे याजको, कटि में टाट बान्ध कर छाती पीट-पीट के रोओ! हे वेदी के टहलुओ, हाय, हाय, करो। हे मेरे परमेश्वर के टहलुओ, आओ, टाट ओढ़े हुए रात बिताओ! क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर के भवन में अन्नबलि और अर्घ अब नहीं आते॥उपवास का दिन ठहराओ, महासभा का प्रचार करो। पुरनियों को, वरन देश के सब रहने वालों को भी अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में इकट्ठे कर के उसकी दोहाई दो॥ उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन हो कर आएगा।
(योएल 1:4-15)

अतिप्रिय बंधुओं परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा एलोहीम का करोड़ों करोड़ों धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए, उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे, क्योंकि वह भला है उसकी करुणा सदा की हैlll

प्रियजनों जैसा कि मैं बार बार कह रहा था कि हम इस अंतिम युग के अंतिम पड़ाव में रह रहे हैं, जिस किसी मनुष्य ने अब भी अपना मन ना फिराया और खुद को सम्पूर्ण आत्मा से प्रभु परमेश्वर येशुआ मेसियाख के पवित्र चरणों में पूरी ईमानदारी से अर्पित ना किया तो सर्वनाश निश्चित है, क्योंकि यह घुटने टेककर अपने किये पर पछताने और पश्चाताप करने का, अर्थात समस्त पाप स्वभाव से मन फिराने का समय है,
लोगों ने कोरोना महामारी को बहुत ही हल्के में लिया था, उसके दुष्परिणाम हम अपनी आँखों से देख ही रहे हैं और तभी अचानक से एक दूसरी आपदा ने हमारी इस भूमि पर हमला कर दिया है, इसे भी हल्के में ना लें क्योंकि जिन्होंने पवित्रशास्त्र बाइबिल का भलीभांति अध्ययन किया है वे जानते हैं की हम सभी अर्थात इस जगत के सम्पूर्ण मानव जाति सर्वनाश के कगार पर खड़े हुए हैं, प्रभु येशुआ के द्वितीय आगमन के पूर्व पश्चाताप और विलाप के साथ मन फिराने का एक अंतिम अवसर अनुग्रह से हमें प्रदान किया गया है और परम प्रधान परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए कह रहा है कि-
और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना॥
(लूका 19:44)
प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।
(2 पतरस 3:9)
मैं ने उस को मन फिराने के लिये अवसर दिया, पर वह अपने व्यभिचार से मन फिराना नहीं चाहती।
(प्रकाशित वाक्य 2:21)
हाँ प्रियजनों यही सम्पूर्ण सत्य है सम्पूर्ण जगत के मानव मात्र का कि वह अपने ही बकवास दम्भ में ज़ी रहा है अथवा जीने कि कोशिश कर रहा है वहीं सकल धर्म का बैरी, परमेश्वर का परम विरोधी दुष्ट अति धूर्त शैतान सम्पूर्ण मानव जाति को सर्वनाश के कगार पर लाकर हमें जीने ना देने की अपनी ही कल्पना को साकार करने की धुन में है और परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर ने सिर्फ अनुमति दी है ताकि मनुष्य मात्र को अपनी वास्तविकता से रूबरू करा सके उर्दू में कहा जाये तो वह इंसान को उसकी ओकात याद दिलाना चाहता है फिर भी वह हमारा सृजनहार है इसीलिए अब भी वह हमसे अथाह सागर से भी गहिरा प्रेम करता है क्योंकि वह हमारा बचाने वाला भी है, हमें इस आपदा से बचाना भी चाहता है, परन्तु विडंबना ही कहलें कि मनुष्य उसकी चेतावनियों को तुच्छ  जानकर प्राप्त अवसरों को खोता चला जा रहा है, और कुछ लोग तो इसी दम्भ में ज़ी रहे हैं कि मैं तो प्रभु का हूँ भाई, मुझे क्या जरूरत है मन फिराने की क्योंकि मैं तो बचपन से मसीही कहलाता हूँ क्योंकि बचपन से मेरा नाम पॉल है, जॉन है, पीटर है, जोसेफ है हम तो अपने नाम से ही बच जायेंगे अर्थात प्रभु हमारे नामों के अनुसार ही हमें बचा लेंगे परन्त्तु जिसके कान हों वे सुन लें की यह शताब्दी का सबसे बड़ा जोक अर्थात मजाक ठहरेगा, सचमुच यह अत्याधिक हास्यास्पद बात है और मूर्खतापूर्ण भी क्योंकि ऐसा कहकर लोग बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी में ज़ी रहे हैं, क्योंकि नामधारी मसीहियों का भी वही हाल होना है जो शेष जगत का और बचेंगे केवल वही जिन्होंने जल और आत्मा से नए जन्म की  पारलौकिक, परम अनुभूति को पा लिया है और जिन्होंने परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर प्रभु येशुआ मेसियाख से पवित्रात्मा के द्वारा एकाकार कर लिया हैlll कुल मिलाकर जिन्होंने प्राप्त अवसर को बहुमूल्य समझकर अपने पाप स्वभाव से मन फिरा लिया हो (यूहन्ना 3:1-10, तीतुस 3:3-10,)
अर्थात रोमियों कि पत्री अध्याय 8 के 1 से 14 तक उद्घोषित परम  प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन के अनुसार चलता हो (उपरोक्त वचनों को अत्याधिक ध्यान पूर्वक पढें)
क्योंकि अब देर ना होगी हमें अपने आपको रोमियों की  पत्री 12:1-7 में  लिखे हुए वचनों के आधार पर खुद को पूरी रीति से प्रभु के चारणों में अर्पित करने का अवसर है ये, और प्रभु परमेश्वर स्वयं कहते हैं कि-
और अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। (आमो. 5:13, कुलु. 4:5)
(इफिसियों 5:16)
अर्थात यही है वो अंतिम अवसर जो इस जगत के लोगों को अपने अनुग्रह से प्रदान किया गया है, अगर अब भी इस अवसर को तुच्छ सा जानकर अपना मन ना फिराएं तो सर्वनाश निश्चित है, ऐसा मैं नहीं वरन परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन कहता है lll
प्रियजनों योएल भविष्यद्वक्ता ने हजारों साल पूर्व इन्हीं दिनों को सर्वशक्तिमान कीओर से सर्वनाश का दिन कहा है जैसा कि इसी सन्देश के प्रारम्भ में अति स्पष्ट रीति से  उल्लेखित है, और  इन्हीं बातों की पुष्टि पवित्र शास्त्र बाइबिल के ही अंतिम पुस्तक प्रकाशित वाक्य में भी अतिस्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए की गयी है जो कि  आज से तक़रीबन  2000 साल पाहिले, प्रभु येशु मसीह के स्वर्गारोहण के पश्चात्, पहली ही शताब्दी में पवित्रात्मा के द्वारा यूहन्ना प्रेरित ने लिखीं लिखी थीं, और वे सारी बातें ही आज अक्षरशः पूरी होती दिखाई दे रहीं हैं, इसीलिए आज का हर एक सच्चा मसीही, (अर्थात मसीही धर्म का अनुयायी नहीं वरन) मसीह का सच्चा अनुयायी, अत्याधिक व्याकुल है, वह भी खुद अपने लिए नहीं वरन इस जगत के लिए, जो अनजाने ही विनाश की  ओर अति वेग से जा रहा है lll
प्रिय जनों बहुतों ने अभी भी नम्र और दीन होकर मन फिराने अपने किये पर सच्चे मन से पश्चाताप करने के बजाय, अपने अपने हृदयों को अब भी उद्धारकर्ता प्रभु येशु मसीह के प्रति अत्यधिक कठोर कर रखा है क्योंकि मसीह यीशु चंद मुट्ठी भर लोगों या किसी एक कुल या जाति की बपौती नहीं है वरन वह तो सम्पूर्ण मानव जाति का उद्धारकर्ता है इसीलिए किसी मसीहियों की प्रार्थना पर निर्भर ना रहकर प्रत्येक मानव जाति का प्रथम कर्तव्य है, कि मन फिराकर खुद को उसके पवित्र चरणों में अर्पित कर दें परन्तु मनुष्य है कि अपने अपने किये पर शर्मसार होने की बात तो दूर वरन उन्हें रत्ती भर भी रंज नहीं, वरन अपने सृजनहार पर ही सवाल खड़े कर देने पर उतारू हैं, और अभी भी सृजनहार प्रभु परमेश्वर यीशु मसीह को सिर्फ तथाकथित ईसाईयों का कुल देवता समझकर, किसी और परमात्मा से पूछ रहे हैं कि वह इस सर्वनाश की अनुमति क्यों दे रहा है ???
प्रियजनों याद रखें इंसानों के बर्दाश्त की एक हद होती है, तो निश्चित ही मनुष्यों को सृजने वाला परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की भी सहने की एक हद है, परन्तु उसकी दया का जो असीमित है जिसका कोई अंत नहीं हद नहीं क्योंकि वह तो प्रेम है, इसीलिए तो हम अब तक बचे हुए हैं, और निर्मूल नहीं हुए हैं, स्मरण रहे यह तो प्रारम्भ है अंत का, यही समझो कि यही अंतिम चेतावनी है, हमारे मन फिराने के लिए क्योंकि अभी तो आने वाली हैं वे बातें जिन्हें देखकर मनुष्य पहाड़ों से कहेगा कि मेरे ऊपर गिर जाओ ताकि मैं मर जाऊँ, और  इस अति दर्दनाक मंजर से होकर गुजरने से मौत ही भली है, परन्तु लिखा है उस दिन तुमको मौत भी ना मिलेगी, क्योकि जिंदगी और मौत तो उसी परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के हाथ में निहित है, वही तुम्हारे ह्रदय कि कठोरता के अनुसार उस आने वाले अति भयानक दर्द से होकर गुजरने देगा वह भी मौत  दिये बगैर, क्योंकि मौत तो आसान सा रास्ता होता है दर्द से मुक्ति का, परन्तु उन दिनों में मनुष्य मरने में भी नाकाम होगा, ऐसे दिन निःसंदेह आने वाले हैं क्योंकि ऐसा मैं नहीं, वरन पवित्र शास्त्र बाइबिल में, परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन हमारे उद्धारकर्ता और प्रभु, यीशु मसीह ने अति स्पष्ट रीति से उद्घोषणा कर दी है, अब किसी भी झूठे भविष्यद्वक्ताओं के लिए अपने नाम और शोहरत के लिए फ़ालतू में चोंच चलाने का कोई मतलब नहीं निकलता वरन ऐसे झूठे लोगों को भी खुद को पवित्रात्मा को पूरी ईमानदारी से सौंप दो और परमेश्वर के मर्म को अनुभव से जानलो, फिर से कहता हूँ अवसर को बहुमूल्य समझो दीन बहुत ही बुरे हैं।
(रोमियों 12:1-7,एवं इफिसियों 5:16)

परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर अपने इस अद्भुद सन्देश के द्वारा आपके ज्ञान चक्षुओं को खोल दे और परम सत्य का ज्ञान दे lll आमीन फिर आमीन lll

Saturday, May 23, 2020

ONLINE "PRAYER “DECLARATION OF FAITH””, 24-05-2020 "IN ENGLISH"

FAILURE TO RECOGNIZE GOD'S VOICE

 NKJV Hebrews 4:12 "For the word of God is living and powerful, and sharper than any two edged sword, piercing even to the division of soul and spirit, and of joints and marrow, and is a discerner of the thoughts and intents of the heart." NKJV 2 Timothy 3:16: "All scripture is given by inspiration of God, and iprofitable for doctrine, for reproof, for correction, for instruction in righteousness, that the man of God may be complete, thoroughly equipped for every good work."
   
   On 24th April, 2020, I was in the Spirit of the Lord and made to stand in front of a path. I was with another person and we stood facing that path. Behind us was a big mountain which was spread like a rainbow from one end to the other. Although it was a rainbow, it looked as if something was written on its top. There was also an in-let or a door. A lot of people came and stood by the mountain. They looked like the rainbow. They kept coming and stood systematically one after another, forming a rainbow-like pattern. I was told to go back where I came from; and I did so. When I looked, I saw that the people's heads were at the same level with the rainbow. 

   I then started walking with some people going back to the mountain. I saw that something was happening in front. When we reached, I saw that those who were spiritually standing upright were filled with fear. It seemed as though they were fearing and thinking that we would harm them. Suddenly, something came from behind. It was like a flying fiery arrow or spear that was shot by a very tall man who was behind us. It came with a terrific sound and speed. On either side of the path were deep furrows. The sound of the flying spear scared them and many people fell into the furrows which swallowed and covered them completely. Only three people remained standing without any fear. Other people started coming and joined the three persons. Then a voice said, "These very ones are enough for me!" 

   I looked and saw that the three persons and those who joined them were standing by the door. A voice said, "The thing that scared the people was not a spear but God's voice which was telling them to enter." God said, "You are saying you want to be saved, but you have never heard or known my voice. KJV John 10: 27: "My sheep hear my voice, and I know them, and they follow me..." God said, "But as for you, I have seen that you terrified by my voice. How will you enter then?" That powerful voice was saying, "Enter through that door you people!" Unfortunately, people scampered and fell in the furrows and perished. Then God said, "Irene, those who are called are many but those who will enter are only a few. KJV Matthew 22: 14: "For many are called, but few are chosen."

   The three persons and few others who came to join them are God's children. They represent us. God said that if He came right now, we would not be saved. He would not take us home because we do not understand when He speaks to us. Sometimes, God's voice makes us weak when He is actually correcting us. But those few who remained, heard Jesus Christ's voice and entered because their eyes were fixed on Him. KJV Revelation 3: 20 says, "Behold, I stand at the door, and knock: if any man hear my voice, and open the door, I will come in to him, and will sup with him, and he with me."

   As for me, I heard God's voice as a spear following me, but I did not look back. I just felt something pushing me to enter. Those who were standing on my Father's side fell down; the way figs fall when terribly shaken. God said, "You will fall on that day!" Brethren, we must stand very well and firm. This time around, we need to be very familiar with God's voice so that when He will speak to us in future, we will be able to endure and recognize it. He said, "You need to start encouraging each other to walk uprightly because the road has now become tough." God's true church will be ashamed when she fails to enter into His kingdom. Church leaders who have exalted themselves to higher positions where God has not set them, will be ashamed when they realize that they have been left out.  

   People who were at the rainbow are those who are holding on to God's throne. They looked as if they were tied to the rainbow. Unfortunately, He said, "Even if you are right at the door, you will still fall if you do not hear my call." KJV Proverbs 1: 27-30: "When your fear cometh as desolation, and your destruction cometh as a whirlwind; when distress and anguish cometh upon you; Then shall they call upon me, but I will not answer; they shall seek me early, but they shall not find me: For that they hated knowledge, and did not choose the fear of the LORD: They would none of my counsel: they despised all my reproof."

   God's voice moves like a fiery spear and is felt as lightning when it enters in you. As it moves like a spear, it comes for the sole purpose of piercing the sin that is in you. Just where the sin of gossiping or stealing is, the word pierces and then paralyzes it. But if you are not standing upright, you will run away from His voice when He is just telling you to stop committing sin. You will even start saying, "Why is Irene telling me to stop this and that yet she is doing the same thing?" If you are not wise, you can even miss hearing it. It can make you weak; it is not just easy to hear.

   The devil still has power to block God's voice. Satan can say, "This voice which is coming with such power will destroy what I have planted in this person." So he will block it. What prevented the people from hearing the voice that was inviting them to enter was the sin that was planted in them by the devil. God is showing us that even if we are near His throne, we are still sinners. When Jesus Christ comes, sinners will see Him as their enemy, so they will run away saying, "Why has He come? He will kill us!" KJV Revelation 6:16-17 "And said to the mountains and rocks, Fall on us, and hide us from the face of him that sitteth on the throne, and from the wrath of the Lamb: For the great day of his wrath is come; and who shall be able to stand?" But the believers will be filled with joy. KJV Revelation 3: 12: "Him that overcometh will I make a pillar in the temple of my God, and he shall go no more out: and I will write upon him the name of my God, and the name of the city of my God, which is new Jerusalem...and I will write upon him my new name." If we think we will only repent when we hear the voice which says, "He who is holy, let him be holy still," then we are just wasting our time. Revelation 22: 11 "He who is unjust, let him be unjust still; he who is filthy, let him be filthy still; he who is righteous, let him be righteous still; he who is holy, let him be holy still." This message was short but very scary.

   When others are trying to encourage us to stand well, we tell them to leave us alone. KJV Proverbs 1: 24-26: "Because I have called, and ye refused; I have stretched out my hand, and no man regarded; But ye have set at nought all my counsel, and would none of my reproof: I also will laugh at your calamity; I will mock when your fear cometh." I saw things that disturbed my mind. God saw you as people who had held each other well at that rainbow. But others did not want hence, they let go of their friends' hands who wanted to help them, saying, "Leave me! Is it jail? Can't you see that my hand is paining this side?" It seems like people were tied to that rainbow (God's throne), but when the shaking came, they fell off. The best is to hold each other in Christ; if not, we will perish. KJV Matthew 25: 30  "And cast ye the unprofitable servant into outer darkness: there shall be weeping and gnashing of teeth."

   In this journey, we have to hold each other so that we are strengthened in times of falling away. If that unity was there, those people would have said to each other, "Listen, they are telling us to enter." Let us keep our friends busy with salvation even if they get angry with us. Others are saying, "Sister Irene is too persistent; she does not want us to be free." No friends! I am looking at the time we have reached. I am also forced to come to you, whether you like it or not. You have to hear it so that you will be convicted accordingly. When I am forced to tell you, and you refuse to hearken, then I will leave you. Moses used force, otherwise, everyone would have remained in Egypt and Pharaoh would have killed many. Galatians 6:2 says, "Bear one another's burdens and so fulfill the law of Christ."

   A preacher of this time must persevere. The problem is that you do not want to be advised. Some are chosen to advise others on the issue of salvation. Let us push our friends unless they blatantly refuse. Let us move with God and the Holy Spirit. He who will fight our battle is Jesus Christ. He is the only one who can give us permission to enter in God's kingdom. Matthew 25: 34 states, "Then the King will say to those on His right side, 'Come, you blessed of My Father, inherit the kingdom prepared for you from the foundation of the world.'"

   Those who were at the throne of God is His true church; the Seventh-day Adventist (SDA) Church. The three persons stand for a few among Seventh-day Adventists whose names are written in the book of life. Those who came to join the three persons are gentiles; the prostitutes, thieves, drunkards and non-Adventists. KJV John 10: 16: "And other sheep I have, which are not of this fold: them also I must bring, and they shall hear my voice; and there shall be one fold, and one shepherd." If witches and wizards will be near God's throne, what about you pastors and elders! Where will you be at that time? God was showing how a Christian who knows the message in truth and reality may fall in the last days. That is spiritual backsliding. They may not stop you from working in the church, but in God's eyes, you are a backslider because you are failing to recognize His voice. But the gentiles will hear the voice telling them to enter. Jesus said in Matthew 21:31,32: "...assuredly, I say to you that tax collectors and harlots enter the kingdom of God before you. For John came to you in the way of righteousness, and you did not believe him; but tax collectors and harlots believed him; and when you saw it, you did not afterward relent and believe him."

   Those who have already missed His voice are just like shadows in God's eyes. God tells us that we are the salt of this world. But on that day, we will be saltless. KJV Matthew 5:13 states, "Ye are the salt of the earth: but if the salt has lost his savour, wherewith shall it be salted? It is thenceforth good for nothing, but to be cast out, and to be trodden under foot by men." The time to listen to the Master's voice is now so that we will not miss it the day He will call us to  enter the new Jerusalem. We are lukewarm! God wants those who are hot. KJV Revelation 3: 15, 16: "I know thy works, that thou art neither cold nor hot: I would thou wert cold or hot. So then because thou art lukewarm, and neither cold nor hot, I will spue thee out of my mouth." Men like elders and pastors who are spiritually weak, will be the first ones to fall. Brethren, the time of shaking has come.

Sermon with Evening Prayer, "GROW IN GOD" II "ईश्वर में बढ़ें "II 23-05-2...

Sunday, May 17, 2020

Sermon with Evening Prayer, "UNDER CONSTRUCTION!" II "निर्माणधीन !"II 17...

जीवन की रोटी




परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर कहते हैं कि जीवन और मृत्यु को मैने तुम्हारे साम्हने रखा है तुम जिसे चुनना चाहो चुनलो फैसला तुम्हारा, हमारे इस अविनाशी जीवन का मूल स्रोत, सृजनहार, परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर और उसकी जीवदायी आज्ञाएँ अथवा परमेश्वर की श्रिष्टी, अर्थात नाशवान, निरे भौतिक मनुष्य और उनकी अपनी  सांसारिक परम्पराएं, किसे मानना है किसका भय खाना है, चुनाव आपका।।

क्योंकि पवित्र शास्त्र बाइबिल तो हमें स्पष्ट रीति से चेतावनी देकर कहता है कि-
जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है। मत्ती 10:28*
क्योंकि जीविते परमेश्वर के हाथ में पड़ना अति भयानक होता है
इब्रानियों 10:31

अतिप्रिय बन्धुओं परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस उत्तम वचन के लिए और उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे क्योंकि वो भला है और करुणा सदा की है।।।

प्रियजनों अधिकांशतः हमारे जीवन मे अचानक से कुछ ऐसे मोड़ आ जाते हैं जहां हमें तुरंत ही ये निर्णय लेना होता है कि, परमेश्वर या मनुष्य और उसकी परम्पराएं एवं रीति रिवाज
और ऐसे मोड़ प्रत्येक मनुष्यों के जीवन में कई कई बार आते है, मुझे तो कई बार ऐसा लगता है कि मन को जांचने और ह्रदय को परखने वाला परमेश्वर जानबूझ कर इन परिस्थितियों को हमारे जीवनों में आने देता है ताकि हम खरे उतरें ।।
परंतु वहीं दूसरी ओर अधिकांशतः मनुष्य यहीं पर चूक कर जाता है, क्योंकि उसकी अपनी सोच के मुताबिक, जो कि उसकी अपनी भावनाओं पर केंद्रित विचारधाराओं से ओतप्रोत होती हैं, (क्योंकि मनुष्य एक भावनात्मक प्राणी होता है) सो अपनी इन्हीं भावनाओं से भरी सोच और मानसिकता और मान्यताओं के मुताबिक मनुष्य यह  मान लेता है कि हमारा परिवार, खानदान, समाज जो 24 घंटे हमारे साथ रहता है जिनके लिए हम जी रहे हैं उनकी पहिले सुनना जरूरी है, सुख चैन से जीने के लिए (जबकि सच्चा सुख और चैन तो केवल परमेश्वर की ओर से मिलता है और वो ही उसमें चिर स्थिरता प्रदान करता है)।।। विडंबना है ये या कुछ और कि मनुष्य अपने वास्तविक सुखों के मूल श्रोत को ही नहीं जानता और पहिचानता हैं अर्थात उसका ज्ञान ही नहीं रखता कहूँ तो अतिशयोक्ति ना होगी, क्योंकि वो इनकी भौतिक आँखों से नजर नहीं आता इसीलिए तो परमेश्वर स्वयं कहते हैं कि -                 
मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नाश हो गई; तू ने मेरे ज्ञान को तुच्छ जाना है, इसलिये मैं तुझे अपना याजक रहने के अयोग्य ठहराऊंगा। और इसलिये कि तू ने अपने परमेश्वर की व्यवस्था को तज दिया है, मैं भी तेरे लड़के-बालों को छोड़ दूंगा।
(होशे 4:6)

अति स्पष्ट है कि जो परमेश्वर का ज्ञान रखता है वो मनुष्यों कि परम्पराओं, तीज त्योहारों और तत्व ज्ञान से परे परमेश्वर कि व्यवस्था उसके नियम कानूनों से प्रेम करेगा lll
परन्तु यहाँ तो मनुष्यों की सोच बिलकुल उल्टी दिखती है वे सोचते हैं क्योंकि परमेश्वर तो बहुत दूर स्वर्ग में रहते हैं उन्हें तो हम कभी भी मना लेंगे जिनके बीच में हमें रहना है उन्हें खुश रखना जरूरी है, परन्तु स्मरण रखें कि वो तो सर्वव्याप्त है, हर पल, हर समय हर कहीं अर्थात तुम्हारे सबसे करीब, वरन जिसने उसे सम्पूर्ण आत्मा से आत्मसात किया है उनके तो अंदर भी बसता है, बस जरूरत है तो एक निश्छल, निष्कपट ,सीधे ,सच्चे और सरल, ह्रदय की, जो उसे हर एक पल अपने भीत में  अनुभूति अर्थात महसूसने पाए, क्योंकि वो तो परम पवित्र परम आत्मा है वो पाप के साथ वास नहीं करता क्योंकि पाप से तो उसे घ्रणा है, परंतु हम पापियों से अथाह सागर से भी गहरा प्रेम है उसे और जहां सिर्फ प्रेम ही प्रेम है वहां वो रहता है, निःसंदेह उसकी पवित्र उपस्थिति वहीं होती है क्योंकि वह स्वयं सर्व सिद्ध अनंत कलिक प्रेम है।।।
अतिप्रिय बन्धुओं क्योंकि हम उसे जानते नहीं इसलिए उसे मानते नहीं, मानते भी हैं तो अज्ञानतावश, भावनात्मक तौर से कि वो तो कण कण में है इसलिए सबमें वो व्याप्त है कहीं भी किसी को भी पूज लो वो ही मिलेगा, यह बात तो उनके लिए जिन्होंने उसे पा लिया है अति मूर्खतापूर्ण एवं हास्यापद है, क्योंकि
 उसकी अपनी श्रष्टी में हम उसकी कलाकृति और अद्भुद ज्ञान का समावेश तो देख सकते हैं परन्तु उसके स्वरूप को नहीं क्योंकि वो अपनी ही सृष्टि से सर्वथा भिन्न है और उसका अस्तित्व भी हम सबसे भिन्न है वो सर्व व्यापी तो है परंतु अशुद्ध अर्थात पाप अर्थात किसी भी प्रकार के बंधनों से मुक्त है इसीलिए वो सबमें नही है परन्तु सब जगह वो मौजूद है अर्थात सर्वव्याप्त है, क्योंकि वो तो अद्भुद है अनोखा और सर्वश्रेष्ठ है सर्वसिद्ध, निष्पाप निष्कलंक और निर्दोष है वो, उसके लिए सब कुछ संभव है खुद की बनाई हुई समय सीमाओं से परे उन्मुक्त सारे समयों का वो सबका स्वामी है, वो तो अपनी ही मन मर्जी का मालिक हम सब उसकी श्रिष्टि मात्र हैं, सचमुच हम तो निमित्त मात्र हैं ।।
हमें उसे समझने के लिए अनुग्रह और समझ भी वो ही देता है वह भी पवित्रात्मा के दान स्वरूप, इसीलिए तो इस आत्मा के बारे में परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन अति स्पष्ट रीति से उद्घोषणा करते हुए कहता है कि -
यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी।
(यशायाह 11:2)
 अर्थात जिस किसी पर यह आत्मा ठहरेगी सो ही उसे अनुभूति करने पाता है जान पाता है, अर्थात उस परम धन्य परमेश्वर को महसूसने के लिए उसका आत्मा (पवित्रात्मा)
जो हममें तभी वास करते हैं जब हम उसी एक के अनुग्रह से अपने पाप स्वभाव से मन फिराकर प्रभु येशुआ जो मसीह कहलाया के सनातन सत्य और सिद्ध नाम से जल और आत्मा से नये जन्म की परालौकिक परम अनुभूति को प्राप्त कर लें।।।।
अफसोस होता है कि, अज्ञानता वश मनुष्य अपनी निराधार सांसारिक शारीरिक भावनाओं के चलते भारी भूल में पड़ जाता है, कई बार और मनुष्यों को खुश करने के चक्कर में परमेश्वर के अतिभयंकर कोप का भागी हो जाता है।।
देखिए हमें सबसे पहिले तो ये जानना होगा कि ये मानव समाज और उसकी परम्पराएं यम नियम, कर्म काण्ड, विधिविधान, साँख्य सब कुछ मनुष्यों के सीमित मष्तिष्क और उनकी अपनी सीमित बुद्धि और ज्ञान की वे उपज मात्र होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य स्वर्ग के दरवाजों को खोलने की बात तो बहुत दूर उन्हें खटखटा भी नही सकता है, वरन इन परम्पराओं के द्वारा स्वर्ग के दरवाजों को तो वो छू भी नही सकता है,
तो इन परम्पराओं मान्यताओं भावनाओं से वो परमेश्वर, जो सबमें सब कुछ कर सकते है, उन्हें कैसे प्रसन्न कर सकता है???
क्योंकि मनुष्यों की बुद्धिमानी भी परमेश्वर के सम्मुख मूर्खता ठहरती है ।।
ऐसे में भलाई तो सिर्फ इसी में है कि निरंतर प्रयास करें कि किसी भी तरह से हम केवल अपने सृजनहार परमेश्वर को खुश कर सकें, चाहे इसके लिए हमें असंख्यों समाज और उसकी इन बेतुकी, रीति रिवाजों और  परम्पराओं का त्याग ही क्यों न करना पड़े।।।
परंतु विडंबना ही कहलो या कुछ औऱ कि प्रत्येक मनुष्यों की उनकी अपनी उल्टी खोपड़ी में ठीक उल्टी ही सोच उत्पन्न होती है, इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि उदाहरण के लिए,
उस परम पवित्र परमात्मा परमेश्वर से अपने निज संबंधों को सही तरीके से और विधिवत रूप से स्थापित नही कर पाना, वह भी अपने जन्म स्वभाव रूपी पाप के चलते,
और इसीलिए छटपटाहट में वे खुद अपनी ही बुद्धि से पाप स्वभाव से मुक्ति का साधन या विधि ढूंढ लेते हैं, और असफल होने पर इसके प्रति उदासीन होकर, परमेश्वर से दूरी बना लेते हैं, और फिर मानव मात्र से अथवा अपने समाज जैसे मनुष्यकृत व्यवस्था से चिपक जाते हैं एक गोंच कि तरह क्योंकि उसी से उनका भरण पोषण होता है सो अपने समाज पर परमेश्वर से भी ज्यादा निर्भर हो जाते हैं।।
क्योंकि मनुष्य तो एक सामाजिक प्राणी होता है जो सिर्फ अपने स्वार्थ और अपनी निजी भावनाओं की संतुष्टि के लिए ही तो जीता है सो ही वो ऐसा करता है ऐसा कहना अतिश्योक्ति ना होगी।।
अगर उसे किसी वस्तु की आवश्यकता ही नहीं होती तो अपने में ही मस्त रह लेता है मनुष्य।।
 अधिकांशतः मनुष्य स्वभाववश परमेश्वर से भी अपने इसी स्वार्थ के लिए अर्थात आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जुड़ता है, क्योंकि वो  इतना तो जानता है कि ,,
जो मनुष्यों से भी नहीं हो सकता वो परमेश्वर से हो सकता है
तो कुल मिलाकर छोटी मोटी आवश्यकताओं के लिए समाज चाहिए बड़ी बड़ी आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर, कुल मिलाकर स्वार्थ स्वार्थ और स्वार्थ, स्वार्थ के बिना सब कुछ अधूरा है, क्योंकि स्वार्थ से ही उसका जीवन चलता है इनके लिए परोपकार तो फालतू के लोगों का काम है अर्थात बुद्धिहीन मुट्ठी भर साधू संतों का जिन्हें जीना नहीं आता क्योंकि मनुष्य और उसके जीवन के लिए स्वार्थ ही इनका कुल देवता है जो इनके ऊपर चढ़ने की सीढ़ी होती है, इन स्वार्थियों के लिए उदारता तो हर दूसरे इंसान में होना ही चाहिए ताकि इन्हे सब कुछ मिलता रहे परन्तु खुद इनमें तो केवल स्वार्थ ही जिसके चलते वो सब कुछ पा सकें।।।
प्रिय जनों यही हर उस मनुष्य की सोच होती है जो अपने सृजनहार को नहीं जानता lll
परंतु स्मरण रहे परमेश्वर ने मनुष्य को सृजते वक्त ऐसा सृजा नहीं था परन्तु कालांतर में पाप स्वभाव में फंसकर ही मनुष्य ऐसा हो गया है क्योंकि पवित्र शास्त्र बाइबल भी हमें यही सिखाता है।।।
मनुष्य अपने इन निजी स्वार्थों के चक्कर में ये भूल जाता है कि, उसका इस जगत में आने का मकसद, इस बहुमूल्य जीवन को पाने का मूल उद्देश्य, सिर्फ और सिर्फ अपने इस पाप स्वभाव से मुक्ति पाना, उद्धार पाना है।।।
 अर्थात वो ये भूल जाता है कि, हमने जो ये जीवन पाया है, वो किसी और की अमानत है, इसे उसी एक की सिद्ध इच्छा के अनुरूप जीकर उसे सौंप देना ही हमारा परम कर्तव्य और एक मात्र उद्देश्य होना चाहिए ।।।
इस एक मात्र परम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ही, हम इस जगत में भेजे गए हैं ऐसा कहना अतिश्योक्ति ना होगी।।
जैसा कि भगवत गीता में लिखा है कि,
ईह लोकं मुक्ति द्वारं
अर्थात यही लोक मुक्ति का द्वार है अर्थात इस जीवन को व्यर्थगवां देने के पश्चात अनन्त काल तक नरक की आग में सड़ना ही बाकी रह जाता है अर्थात अनंन्त म्रत्यु को प्राप्त करना जीवन की सारी उम्मीदें खत्म , इसी एक बात की स्पष्ट उदघोषणा अनेको स्थानों में हम पवित्रशास्त्र बाइबिल में पाते हैं जैसे कि प्रभु येशू मसीह कहते हैं जब तक (पैदा होने के बाद इसी जीवन में)मनुष्य नए सिरे से न जन्मे (अर्थात जल और आत्मा से न जन्मे )स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता ।।।
(यूहन्ना 3:1-10 ध्यान पूर्वक पढ़ें)lll
इसीलिए अति प्रिय बन्धुओं इस जीवन के पश्चात स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना ही मनुष्य का मुख्य लक्छ्य होना चाहिए ,जिसके लिए सर्वलोकाधिपति परम प्रधान पमात्मा परमेश्वर को प्रसन्न करना उसकी आज्ञाओं को मानना उसके अनुग्रह को प्राप्त करने हेतु  उसी के अनुरूप जीवन निर्वाह करना एक मनुष्य की प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि इन मनुष्यकृत परम्पराओं एवं समाजों में से कोई भी आपको स्वर्ग की ओर एक कदम भी चलाने में असमर्थ होते हैं ।।।
अरे अपने इस जीवन को ही लें क्या कोई भी मनुष्य या समाज या यम नियम या परम्पराएं साँख्य योग तपस्या कुछ भी करके या अपनी सोच और शुभ चिंता से अथवा आपकी सहायता करके या अपनी खुद की ताकत से आपके जीवन की घड़ी को बढाने या घटाने मैं सच्छम है??? कदापि और  कदाचित नहीं क्योंकि ये तो परम प्रधान पमात्मा परमेश्वर के अतिरिक्त किसी के लिए भी अनहोना है।।। 
फिर हम क्यों अपनी मूर्खताओं को प्राथमिकता दें,
 हम क्यों उनका भय खाएं जो हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते सिवाय इस शरीर का नाश करने के जिसका नाश कभी न कभी तो होना ही है क्योंकि कोई भी मनुष्य सदा काल के लिए इस नाशवान शरीर में रह ही नहीं सकता यही सम्पूर्ण सत्य है।।।मनुष्य या समाज अपने क्रोध में आकर इस शरीर को समय के पहिले समाप्त कर सकता है जिसे हत्या कहते हैं जिसका की दंड अति भयानक होता है हमारी सोच से भी परे।।।
हम क्यों न उस एक के भय में होकर जियें जो न केवल भौतिक रीति से हमारे जीवन को तो समाप्त कर सकने में सकच्छम है ही वरन अनन्त काल तक के लिए हमें नरक की असहनीय वेदना अर्थात अनंन्त म्रत्यु दंड देने में भी सकच्छम है ,क्योंकि वो सृजनहार परमेश्वर है वो सबमें सब कुछ कर सकता है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं हैं।।।
उसका प्रेम जितना महान है कहीं उससे अति भयंकर है उसके कोप का भाजन होना जीविते परमेश्वर के हाथों में पड़ना अति भयंकर होता है (जैसा कि हिदू मत में भी अक्सर कहा जाता है कि उसकी मार जिसमें आवाज भी नहीं होती अति भयंकर होती है)।।
अतिप्रिय बन्धुओं कुलमिलाकर हम जिस समाज में रह रहे हैं उसी में रहते हुए अपने सृजनहार परमेश्वर को प्राथमिकता देना सीखें,प्रारम्भ में हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है,परंतु धीरे धीरे समाज में आप फिर से अपनी जगह बना लेंगे जब समाज आपको भली भांति समझने लगेगा परंतु समाज के लिए परमेश्वर से पंगा ना ही लें तो बेहतर होगा आपके अपने एक ही बार प्राप्त होने वाले इस बहुमूल्य जीवन के लिए ।।।
इसीलिए पवित्र शास्त्र बाइबिल में संत पौलुस कहते हैं कि , मैं परमेश्वर के विरुद्ध उठने वाली प्रत्येक भावनाओं को अपने पैरों तले कुचल डालता हूँ
यही प्रत्येक विश्वासियों का प्रथम कर्तव्य कर्म होना चाहिए ,बेहतर होगा कि हम जीवित सच्चे परमेश्वर को अपनी बेतुकी झूटी मानवीय भावनाओं से तौलने या मापने की भयंकर भूल ना करें, क्योंकि बाइबिल हमें सिखाता है कि भावना में बहकर हमारे सर्वांग दहन बलि करने से भी उसकी आज्ञाओं को मानना ही सर्वोपरि होता है ,यही पवित्र शास्त्र बाइबिल हमें चेतावनी के साथ सिखाता है।।।

प्रिय जनों प्रभु येशू मसीह का द्वितीय आगमन अति निकट है ,हमें पवित्रता के साथ उसके आगमन की बाट जोहना चाहिये ताकि हम अनन्त काल तक उसी के संग रह सकें।
इन वचनों के द्वारा परमेश्वर आपको बहुतायक की आशीष दें।।।आमीन फिर आमीन।।।

अन्देखा मत करीये

"कया आप शादी शुदा हैं...कहीं आपके सम्भंद किसी गैर मर्द से तो नही किसी गैर ओरत से तो नहीं जरूर पडीये"



                          इफिसियों 5:33

पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने॥

★★★★★★★★★★★★★★★★★

वचन मे साफ साफ लिखा की पति पतनी से प्रेम रखे मगर

आजकल देखने को ये मिलता है की बहूत से शादी शुदा भाई बहिन बैक मे मोल मे फैकटरी मे काम करते है

अंजान लडके लडकियों के साथ तो कई बार हम एक दुसरे से घर की बात करते हैं दुख की या खुशी की
तो होता ये है की साथ काम करने से सबका एक प्यार सा बन जाता है और कही ये भी होता है की हम एक दुसरे की तरफ खीचने लगते है एक दुसरे को पसंद करने लगते हैं
और ये सब गंदी बाते शैतान हमारे मन मे डालता है की हम अपने पति को पतनी को धोखा देके प्यार वयार का चक्कर चलाते हैं

इसी तरह शैतान एक विशवाशी लडके लडकी को सत्य मार्ग से भटकाता है ताकी हम व्यभिचार मे पडके अपने आप को अपवित्र करे और दोशी ठहरे

प्रभु जी के आगे......मुझे इस बात का अच्छी तरह पता है की बहुत से भाई बहिन आज भी शादी शुदा होते हुये घर से बाहर गैर मर्द औरत के साथ प्रेम सम्भंध रखते हैं वो समझते हैं

किसी को कुछ पता नही और सून होकर व्यभिचार करने मे लगे हुये हैं
और वो ये भूल गये की जिस को हमने अपना उद्धार कर्ता  स्वीकार किया है
वो हमको हर समय देखता रहता है

पति पत्नी से पत्नी पति से चोरी चोरी फ़ोन पर बाते करती हैं फैस बुक पर वट्सएप पर मैसीज करते हैं पति पतनी से पत्नी पति से तो छुपा सकते हैं

मगर जो सबको स्वर्ग से देखता रहता है उससे कैसे बचोगे पति को पत्नी से पतनी को पति से प्यार से ईमानदारी से प्रभु जी मे रह के जीवन जीना है

 किसी की सुंदरता को पैसे को देख के उसके साथ सम्भंध मत बनाइए और शैतान के बहकावे मे आके कुछ गैर मर्द गैर औरत से सम्भंध मत बनाओ

नहीं तो प्रभु जी आपसे सम्भंध तोड़ देंगे 

इस लिए सच्चाई इमानदारी से पवित्रता मे रह के अपना जीवन वचन के अनूसार जीओ
ये ही आपके और आपके परिवार के लिए अच्छा है.....

अगर कोई भाई बहिन शादी शुदा होते हुये भी गैर मर्द गैर औरत के साथ सम्भंध मे है तो आज ही इस बुराई से मन फिराऐं और अपना जीवन पवित्रता से जीऐं..

प्रभु जी आपको आशीश दे----

जय मसीह की

ONLINE PRAYER "HEALING PRAYER ALL OVER OUR NATIONS", 17-05-2020 "IN ENGL...

Saturday, May 16, 2020

New collection of Masihi Songs 2020

Sermon with Evening Prayer, "THE NATURE OF FAITH" II"आस्था का स्वरूप"II ...

BE SLOW TO CONDEMN

 "When men are cast down, then thou shalt say, There is lifting up; and he shall save the humble person" (JOB 22:29).

     Sometimes, we think we have a better knowledge of what God commands than others. Worse still, we inadvertently erect a standard of expectation for others far beyond what God demands. Some people feel good doing this because they believe they are helping them. But in reality, they are destroying whatever little faith in God others have left.

     Such was the effect of the words of Job's friend, Eliphaz. When he started his speech, he commended Job for all the good and notable things he had done. But soon, he began to hint that there may be need for him to repent from some unknown sins. He urged him to turn to God and be forgiven.

     Thereafter, he would begin to prosper greatly; the Almighty shall protect him, and he would delight in God. When he prays, God would hear; whatever he decrees shall be done. God would shine His light on him; lift him up and save him from all his troubles. These are truths; only that they did not apply to Job and his circumstances.

     Many injuries have been inflicted as a result of rash judgments and insinuations that are totally untrue. Some young believers in faith have had to backslide as a result of receiving condemnation from those whose duty it is to make them grounded in faith.

     We must ensure at all times that we do not condemn those God has justified. Even when we see people suffering from many adversities, we must not hastily assume that it is because of their sins. Of course, where we see obvious sins, we should encourage them to repent and turn to God. But if they are living as believers, we should assure them of the unfailing promises of God and affirm to them His faithfulness to help His children.

God Makes Coats of Skins for Adam and Eve

(Gen 3:20–21) And Adam called his wife’s name Eve; because she was the mother of all living. To Adam also and to his wife did Jehovah God make coats of skins, and clothed them.

In this image of ‘To Adam also and to his wife did Jehovah God make coats of skins, and clothed them,’ what kind of role does God play when He is with Adam and Eve? Under what kind of role does God appear in a world with only two human beings? As the role of God? Brothers and sisters from Hong Kong, please answer. (As the role of a parent.) Brothers and sisters from South Korea, what kind of role do you think God appears as? (Head of the family.) Brothers and sisters from Taiwan, what do you think? (The role of someone in Adam and Eve’s family, the role of a family member.) Some of you think God appears as a family member of Adam and Eve, while some say God appears as the head of the family and others say as a parent. All of these are very appropriate. But what is it that I’m getting at? God created these two people and treated them as His companions. As their only family, God looked after their living and also took care of their basic necessities. Here, God appears as a parent of Adam and Eve. While God does this, man does not see how lofty God is; he does not see God’s paramount supremacy, His mysteriousness, and especially not His wrath or majesty. All he sees is God’s humbleness, His affection, His concern for man and His responsibility and care toward him. The attitude and way in which God treated Adam and Eve is akin to how human parents show concern for their own children. It’s also like how human parents love, look after, and care for their own sons and daughters—real, visible, and tangible. Instead of putting Himself in a high and mighty position, God personally used skins to make clothing for man. It doesn’t matter whether this fur coat was used to cover their modesty or to shield them from the cold. In short, this clothing used to cover man’s body was personally made by God with His own hands. Rather than creating it simply through the thought or miraculous methods as people imagine, God had legitimately done something man thinks God could not and should not do. This may be a simple thing some might not even think as worthy of mentioning, but it also allows all those who follow God but were previously full of vague ideas about Him to gain an insight into His genuineness and loveliness, and to see His faithful and humble nature. It makes insufferably arrogant people who think they are high and mighty bow their conceited heads in shame in the face of God’s genuineness and humbleness. Here, God’s genuineness and humbleness further enables people to see how lovable He is. By contrast, the immense God, lovable God, and omnipotent God in people’s hearts is so small, unappealing, and unable to withstand even a single blow. When you see this verse and hear this story, do you look down upon God because He did such a thing? Some people might, but for others it will be the complete opposite. They will think God is genuine and lovable, and it is precisely God’s genuineness and loveliness that moves them. The more they see the real side of God, the more they can appreciate the true existence of God’s love, the importance of God in their hearts, and how He stands beside them at every moment.
At this point, we should link our discussion to the present. If God could do these various little things for the humans He created at the very beginning, even some things that people would never dare think of or expect, then could God do such things for the people of today? Some people say, “Yes!” Why is that? Because God’s essence is not fake, His loveliness is not fake. Because God’s essence truly exists and is not something added on by others, and certainly not something that modifies with changes in time, place, and eras. God’s genuineness and loveliness can truly be brought out through doing something people think is unremarkable and insignificant, something so small that people don’t even think He would ever do. God is not pretentious. There is no exaggeration, disguise, pride, or arrogance in His disposition and essence. He never boasts, but instead loves, shows concern for, looks after, and leads the human beings He created with a faithfulness and sincerity. No matter how much of it people can appreciate, feel, or see, God is absolutely doing these things. Would knowing that God has such an essence affect people’s love for Him? Would it influence their fear of God? I hope when you understand the real side of God you will grow even closer to Him and be able to even more truly appreciate His love and care for mankind, while at the same time also give your heart to God and no longer have any suspicions or doubts toward Him. God is quietly doing everything He is for man, doing it all silently through His sincerity, faithfulness, and love. But He never has any apprehension or regret for all that He does, nor does He ever need anyone to repay Him in any way or have intentions of ever obtaining anything from mankind. The only purpose of everything He has ever done is so He can receive mankind’s true faith and love."
Excerpted from “God’s Work, God’s Disposition, and God Himself I”

Friday, May 15, 2020

ONLINE PRAYER "YOUR SEASON HAS COME", 16-05-2020 "IN ENGLISH"

WHAT STEALS OUR BLESSINGS

 SCRIPTURES
But the LORD said to Moses and Aaron, "Because you did not trust in me enough to honor me as holy in the sight of the Israelites, you will not bring this community into the land I give them."
           ~ Numbers 20:12 

Earthly achievements usually come with temptations. Leadership, Wealth, Politics and other successes lead achievers into vulnerable situations for temptations. Fearing competition can cause murder, wealth bring formication and arrogance....and so on.

Usually temptations lead to sinning, which affect our relationship with God. Like what happened to Moses in today's Scripture.

In this tragic moment Moses forfeited one of the greatest privileges that could have been his, that is leading the Israelites to the promised land. Just because he failed to control his temper, his most obvious character flaw. He ignored what God told him to do to get water. Instead, in anger he did it his way.

Do you have a fatal flaw — one weakness that could undo all your dreams if you give in to it? Most of us do. But by recognizing it and facing it squarely, we can take precautions to prevent ourselves from giving in to it. And we can ask God to help us to avoid the temptations that weaken our resolve.
 HALLELUJAH

            ~ PRAYER ~
Almighty Father, Thank You for all the successes You have given us in this world. Dear Lord, we need to be achievers in life. Let The Holy Spirit Help us to overcome all the temptations in whichever way they come. In Jesus Name. Amen .

Sermon with Evening Prayer, "IRON SHARPENS IRON" II"लोहा लोहे को तेज कर...

                                                        THE FEARFUL DOGS.

On 24th December, 2018, the Lord showed me that the beast is up in arms against the Law of God, and that it is now our duty to uphold the law of Jehovah. All those with spiritual sight have realized that a great crisis awaits the people of God. All the inhabitants of the earth will be on the battle field to attack or to defend the law of God. Those who are to fight for Christ should know that heaven is on their side. The Holy Spirit will strengthen Christ’s messengers. Therefore, they should be patient, courageous and firmly stand for truth. 

In a vision, I was with my mother working in our father’s field. The field was very fertile and had different portions. When we finished the portion which we were given, I was told to go and find my father to tell him that the work was done, and also ask him to show us another portion where to work. So I left home and followed a path toward the east. To get to where my father was, I had to walk through a thick forest.

When I had walked a few meters into the forest, I met four farmers carrying one big basket. I asked them where they were going, and they told me that they were going home. Knowing that they had been bringing food all the times, I asked them if they had brought me the food I so much loved. They answered saying, “Yes we brought you something,” and they showed me bread beautifully baked. The bread was special. The middle part of this wonderful bread looked like Bible pages, and it was very glorious.  I liked the bread and bought three loaves, but they did not allow me to eat or carry it with me. They told me that since they were going home, the food would be kept me, and only be given to me when I return home. 

On my way, I found a group of people rambling in the forest on the right side of the path, and I knew them. They were told to go to the field where we had been working and work, but they changed their minds and wandered in the bush. I asked them where they were going, and they told me that they were sent to work in the field, but they did not want to go to that field because it was very far. Therefore, they were looking for any other field nearby where they would work instead. I left them wandering in the forest.

Ahead, there was a mountain to cross to get to my father. I became anxious to cross and meet him. On the far left there appeared another mountain, dark and very ugly. And I heard a sound like that of a crawling serpent from this mountain. Fear and horror seized me, and I hastened my feet. From a distance, I saw something in the middle of the road.  I did not know what it was because of the light that was covering it. The sound of a crawling thing changed to that of a moving wild cat. I turned my eyes searching through the woods to see what it was, and I saw a terrible leopard-like beast. The beast was fierce and deadly. It had seven heads, and its feet were like that of a bear with long sharp nails. 

When I came near the thing which was surrounded by the light from heaven, I saw that it was the Ark of the  Covenant. On top of the ark, a gift nicely wrapped, was placed. The ark rested on three glorious stones, and in the middle of the stones, there was fire. I saw the beast rushing to destroy the Ark of Covenant. When I realized that it wanted to destroy the sacred article, I quickly ran and got hold of the ark. The beast furiously came and hit the ark with its head and bit it with its teeth. It tried with all its might to move the ark and destroy it.  I firmly held on to it, that it did not move not even an inch. 

My strength could not match that of the beast. I looked at the ark and saw four string like arms from heaven tied to it, and I was encouraged to fight more for I knew that heaven was near to help. A sigh of relief came when I saw many of my father’s watchdogs led by one of his messengers come to my aid barking viciously. But to my disappointment, when they saw the beast, all the dependable watchdogs laid down with their tail between their legs for fear of the beast. The beast saw that the dogs were fearful, so it tried even hard to destroy the ark. This astonished the messenger, and he was greatly discouraged. Again I saw some other dogs come barking violently, and when they came near and saw this terrible beast, they scampered back in fright. 

My strength began to diminish, I reasoned within me, saying, “If I let go of the ark, this beast will kill me, since it has failed to destroy the ark.” So I held fast to the Ark. The beast angrily turned and looked at the watchdogs which were all this time lying down. Knowing that they were in great danger, these watchdogs paid homage to the beast and joined to assist it to destroy the ark. The messenger who kept the dogs became disappointed at what the dogs did. But I heard a voice encouraging him not to despair. Then came small despised but vicious dogs. These small but courageous dogs attacked the beast, and the messenger was greatly encouraged. 

It was a great conflict with the beast, and I became tired, and thought of running away like the dogs did. Then I heard a voice from under the ark whispering to me, saying, “Keep holding on for I am with you and the power of My Father is with you.” When I heard this strength was given me and I became more determined to fight the beast. At last the beast gave up and immediately the Ark of Covenant was taken to heaven. The beast went its way wandering in the forest. 

Then the voice of the Lord came to me, saying, “Go back and work in My field.” I answered and said, “I am going to my father to tell him that we have finished the work which we were given, and to be shown another portion where to work.” The Lord spoke to me, saying, “I wanted you to come and do what you have just done. This is why you found me already here. This is the work you will do. Now go back home, there you will see what has happened. Go and tell your mother that she should go work, there you will be shown the portion where you will labor.”

On my way back home, I found many people wandering in the forest looking for food. In this forest there was food everywhere. I knew some of them and among them were my brothers and sisters. I asked them what they were looking for and they told me that they had come from the field into the forest to look for food. I was amazed to hear that they left all the good healthy foods at home to look for food in the forest. So I asked, “Why have you left all that food at home?” They answered and said, “The food at home is not as delicious as the food in this forest.”

I looked at them and I saw that they had become blind, though they were able to see the food in the forest.  They had left their shoes and working tools and were scattered in the forest searching for food. I asked them whether they heard the noise of a moving beast. They told me that they did not hear anything. I told them of the beast that had risen and everything I saw. When they heard this, they mocked me saying, “This woman is a false prophet, who can hear this? Let us go and gather the food.” I answered and said, “Brothers and sisters, I am not what you think I am, but I am telling the truth. Because you are blind, you are unable to see, but if you go back home you will be healed.” Many of them refused to go back, but a few of them realized their fate and threw away the baskets. They wanted to run back home, but because they were blind they could not see the way. Then the Lord said to me, “Those who are blind will not go back. Look for those who can see dimly, only such can be helped.” I looked around to see if there were some who had eyes, but there was none.

I saw many other people coming from the field. These were sent to report to their master that they had finished the work they were given. But they did not mind to take the report, but instead they too abandoned their tools and went to look for food in the forest. Some of them were my brothers and sisters and I said to them, “Where are you going? Lift up your eyes and see what is coming. Look, your friends are blind and they cannot come back, and the beast has risen.” Attracted by the delicacies ahead, they persisted with immovable firmness to go in the forest and they all became blind. 

I left them in the forest and when I was about to enter the fields, I met another group leaving the field for the forest. I looked at them and saw that they were seeing. I pleaded with them not to go into the forest and explained to them what was happening. One of them came to his senses. He saw that time was no longer. He remembered some prophecies which were given that in later times, Satan will bring many earthly attractions to distract God's people. He turned and hastily went back. The rest refused to listen and were still interested in gathering the precious things of the forest. Their eyes became dim. I tried to plead with them but they refused to go back. Then the Lord said to me, “Let them go.” So I stopped pleading with them and immediately they became blind and went their way. 

In the fields, I met my mother. She also left the field for the forest. She had removed her clothes and was putting on strange garments fit for the forest. I held her and said, “Mother where are you going?” She answered and said, “My daughter, you have come back, did you find your father? I am going out because I have heard that there is food in that forest.” I said, “Mother do not be this excited, yes my father met me and sent me to come and tell you to go out and work, you will be shown the portion where to labor. But do not go in that forest because there, I found a very terrible beast. Look across the forest, the beast is moving about looking for whom to destroy.” But she answered and said, “Hey! Let me go and gather food.” I told her that those who were insisting to go into the evil forest were becoming blind. 

My mother could not listen to me. She answered and said, “I know you are a coward. Everyone is going there and you want me not to go. Look my child, we have not received rewards for the work we did. You know, they are giving free food over there, so, let me go and get something.” I held her and said, “Please trust me, if you go there you will be disappointed.” But she twice slapped me hard on the face, pushed me, and went her way. My mother entered the forest and joined the wicked and unsanctified. There she found her children blind, and she was not able to heal their blindness. To show her heartfelt sympathy, shamelessly she sat with them to feast with the wicked revelers in the forest. 

I came back and found a few faithful brothers and sisters who remained home. The four men I met earlier, who carried a vessel full of bread, were in the field looking for people to work with. I came to them and told them that my mother had left home for the forest, and that when I tried to reason with her, she hit me twice. I told them that her behavior was quite strange. Then one of the four men said, “God’s people are cold, hard-hearted and selfish. Just as she twice slapped you, so the church leadership will treat God’s faithful servants. They will be unfairly disciplined by censure and by removal of membership from the church register in order to silence them. Let her be, she will meet the husband right there.” 

At that moment my father came to her. When she saw him, shame covered her for her course. My father asked her, saying, “Where have you left Irene? Where have you left my faithful children? You have plenty of food back home. Why did you come to eat from this forest?” My mother was speechless. Then my father commanded her to go back to the house, saying, “Go back home and care for your children, if you will not go, they will be destroyed.” Ashamed, my mother left her perishing children and came back home. She found me and a few other children, the children she despised and rejected, working in the field. She came near and tried to be close to them, but they were told to concentrate on the work.  

It makes me sad when God’s people continue on the path of destruction. Despite the daily warnings, they advance nearer and nearer to their destruction. Many know not that the Lord has set me in the church to be her eyes. God would have selected a great character, but instead He chose me a despised woman, and set me in the church to be the eye of His people. If God has not called and given me His word, I would be leading thousand to eternal damnation, and then you would do well to mistreat me.  But if He has truly chosen and called me, the people should know that, when they despise me and reject my testimonies, they despise and reject God Himself.  

The four men with bread are the four angels carrying the last warning messages to the world. Three are in Revelation 14:6-11 and the fourth is in Revelation 18:1. These angels have the food for today. We are to eat this food and give the hungry to eat as well. The angels are looking for men and women to work with, and to their disappointment, many have left for the forest to seat and eat from that wicked table. To many these warning messages are not pleasant, but whether the messages are pleasing or not, we are to carry them to the world, and prepare a people for the great day of the Lord.

The workers I found wandering in the forest, who refused to go and work in the field are those servants who have said in their hearts, the Lord delays His coming. They are they which smite their fellow servants, and are eating and drinking with the drunken. They vex the fatherless and the widow and have despised Gods holy things, violate His law and profaned His Sabbaths. They do not differentiate between the holy and the profane, neither have they showed the difference between the unclean and the clean, for they hide their eyes from God’s Law.  Because they are selfish and disobedient they are unwilling to do the work God gave them, and they have gone out looking for satisfaction elsewhere.

The dark mountain, where the beast came from, is that wicked city called Vatican. The Beast is the Papacy. I was told that the dogs that had been backing at the beast, but later scattered in fears are the men and women that were in the forest gathering food. Some had turned to be the servants of the beast just like the dogs which paid homage to the beast. There are many who are preaching the word of God today that will latter join the beast and fight God’s Law.  

Many today have left the path of duty, they are not feasting on the bread of life, but instead, they have mingled with the unsanctified, received the unclean food and are drunk with the wine of Babylon. Those who were barking at the beast are now aiding it to trample upon the Law of Jehovah. And many who are still barking will one day cease unless they receive the baptism of the Holy Spirit.

The church leadership, represented by this mother’s authority, will discipline God’s servants in order to silence the voice urging people to prepare the way of the Lord. They want to remain with no voice to distract them from doing whatever they want. But God’s faithful messengers will not be silenced. These heaven-sent messengers will stand under the broad shield of Omnipotence. They will not be silenced by the threats of the unsanctified leaders or the reproaches of their brothers and sisters in the faith. 

God is calling upon His children to go out and work in the field, to warn the world and defend God’s holy law.  But instead these wicked children have scoffed and mocked God’s servants who are urging people to repent and be zealous. Many faithful servants have cried out, “Prepare to meet the Lord.” But they have been met with those who had received the same light, but who, in their perverted wisdom, reject all that does not harmonize with their theories, and are determined to follow their own way. They refuse to receive truth themselves, and do all in their power to lead others to regard with indifference the word of the Lord.

ONLINE PRAYER "MY GOD SHALL SUPPLY ALL YOUR NEED", 14-05-2020 "IN ENGLISH"

Wednesday, May 13, 2020

ONLINE PRAYER FOR "UNCONDITIONAL LOVE & GRACE OF GOD", 14-05-2020 "IN EN...

Sermon with Evening Prayer, "BE FULL OF JOY" II "आनंद से भरे रहिये"II ...

PREACH THE GOSPEL AS AN EMERGENCY

ROMANS 10: 14
How then shall they call on him in whom they have not believed? and how shall they believe in him of whom they have not heard? and how shall they hear without a preacher? (KJV)

A man is saved when he believes the gospel. The gospel is a message which must be preached and heard. God has entrusted the preaching of the gospel to men. Therefore, without us preaching the gospel, men will die and go to hell for eternal damnation. It is the will of God for all men to be saved and come to the knowledge of the truth. When we keep quiet, there will be no salvation. Salvation is available for all but unless the gospel is preached, heard and believed, no one can be saved.

Unfortunately, some of our friends, school mates, family members, and colleagues at work and people that we relate often with are not saved but we care less and go about our normal activities without the desire to preach the gospel to them. A man has not heard enough of the gospel until he is saved. You cannot say that you have preached enough to somebody or an unsaved person has already heard enough of the gospel.

The preaching of the gospel must be handled as an emergency. In emergencies, every opportunity is a lifesaving opportunity. You may be his or her last opportunity for salvation. A lot of people are dying without being saved. Salvation is a serious matter. It must be taken as serious as a hospital emergency case. No room for excuses or playing. Souls must be saved. The best expression of love you can ever give to somebody is to preach for him to believe for salvation. See salvation as an emergency assignment. Preach at all time and to all people. The world needs to hear this message of Christ for salvation.

CONFESSION: Salvation of souls is my first priority in all my relationship and acquaintances with men.

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